पृष्ठ:कविवचनसुधा.djvu/६९

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कविचचसुधा।

जे-जारी कर उस बारी से जो माफ तेरी तकसीर करै । या परमेश्वर की रीति नहीं जा आजिज को तानीर करै ।। है बन्दे नेवान गरीबों का बहु जालिम् को जनीर करै । साकिर रहु रामसहाय सदा जो चाहै सो रघुबीर करै ॥ १५ ॥ सनि-सदा तेरा संसार नहीं जिप्स को कहता तू मेरा है । फरजन्द फॉस जोरू ठगिनी घर भाठयारिन का डेरा है ।। तू मोह मवास मात रहा बे समुझ काल ने घेरा है । हुमियार हो रामसहाय सदां उठि लागु सबील सबेरा है ॥१६॥ शीन-शौक तुझे शिव मिलनका तो पीर क प्याला पिउ भाई । करि दृरि तकब्बुर ख्याल खुदी तमकन्त तकल्लुफ दुनियाई ॥ यह प्रेम का पन्थ दुहेला है ना अकिल चलै ना चतुराई । मुरमिद की मेहर मुहब्बत से कुछ रामसहाय सनद पाई ॥१७॥ स्वाद-सुलह राखु सतगुरु सेती तो काम तेग सब जारी है। तप तीरथ पूजा नेम धरम पर एक उसीला भारी है । परतीति करै सोइ पार पडै भव बूढ़े वे-अतिवारी है । श्रीरामसहाय दया सतगुरु की सांची बात बिचारी है ॥ १८ ॥ ज्वाद-जप्त कहां तिनके दिल को जिनने वहदत का जाम पिया। जब शौक होय तो शरम कहां डर डारि गरेबां चाख किया । खुसियाल खुमारी ख्याल खुदी जगजाल से पैर निकार लिया । सब अङ्गमे एकै रङ्ग रचै स्वइ रामसहाय सन्दा सुखिया॥ १९ ॥ तो-तैयारी करु बांधि कमर इस तन तीरथ का मेला कर । घट भीतर तेरे ज्ञान गुरू तू चित अपने को चेला कर ॥