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कविवचनसुधा ।

गुरसेन सहर से सूझि पड़ा बेबूझ बहुत दिन दूर रहा। पीवो सहाय सब मस्तोंने यह नगद नशा मंजूर रहा ।। ३१ ॥ हे-हरजाई हर चारतरफ हरि एक में हरि जो प्यारा है। ह्यां होस के होस हवास खता अरु अकिल ने किया किनारा है ।। चतुराई चौपट ज्ञानगुरू विज्ञान खड्ग चौधारा है । देखो सहाय सूरति समाय हर हाल में लाल हमारा है ॥३२॥ लामअलिफ-लाम में अलिफ मिला अरु अलिफ लाम में लीन मया। कौन दूसरा हरफ कहै जब बुन्द में सिन्धु समाय गया ।। है आदि सनातन रूप वही ताजा ताजे पर नित्त नया । सो सूझै रामसहाय तभी जब राम रूप की होय दया ॥ ३३ ॥ ये-याद रहा यह एक हरफ जो मूल मतालिब है अपना । पर पर कुरान के झगड़े में क्या मगन भुकाना श्री खपना ।। आशिक को ऐन इमान यही सामान सबी सब को सपना । राममहाय सुरामरूप वहि जापक जाप वही जपना ॥ ३४ ॥ धनी धन्य पीर रोशन जमीर जिन सांचा सबक पढ़ाया है। मोहिं जानि मुन्तदी बालबुद्धि सब हरफों में समझाया है । हो कई बार भवसागर में सोते से गोता खाया है । अब रामसहाय दया सतगुरु का ठीक ठिकाना पाया है ॥ ३५ ॥

इति श्री अलिफनामा समाप्तम् ।