पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१०१

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सीत, बात, तोय, तेज आवत समय पाय,
काहू पै न नाखो जाइ ऐसो बांधो सेतु है।
अब, तब, जब, कब, जहाँ देखियत,
विधिही को दीन्हो, सब सबही को देतु है॥६८॥

सर्पो, राक्षसो और दैत्य को पाताल लोक दिया तथा देवातओ को स्वर्ग और मनुष्यो को रहने के लिए भू लोक प्रदान किया। 'केशवदास' कहते है कि चर और अचर जीवो की वृत्ति (जीवका ) प्रदान की। बतलाओ, अब दान का और दूसरा हेतु क्या हो सकता है? (क्योकि जीवका जो सबसे बढकर दान है, वह तो वह दे ही चुके)। अपने-अपने समय पर शीत, वायु, पानी ( वर्षा) और तेज (गरमी) सभी प्राप्त होते है और इनका ऐसा सेतु (मर्यादा) बॉध है कि कोई उल्लघन नहीं कर सकता। अभी या भूत काल मे, जहाँ-कहीं दान दिया जाता है, वह सब ब्रह्माजी ही का दिया हुआ है, जिसे सब लोग सब को दिया करते है।

गिरा का दान वर्णन

कवित्त

बानी जगरानी की उदारता बखानी जाय,
ऐसी मति उदित उदार कौन की भई।
देवता प्रसिद्ध सिद्ध ऋषिराज तप वृद्ध,
कहि कहि हारे सब कहि न काहू लई।
भावी, भूत, वर्तमान, जगत बखानत है,
'केशौदास' क्यों हूँ न बखानी काहू पैगई।
वर्णे पति चारिमुख, पूत वर्णे पॉच मुख,
नाती वर्णे षटमुख, तदपि नई नई॥६९॥

जगत की स्वामिनी श्री सरस्वती जी की उदारता का जो वर्णन कर सके, ऐसी उदार बुद्धि किसकी हुई है? बडे-बडे प्रसिद्ध देवता,