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और पुनरुक्ति ( एक ही शब्द को बारबार दुहराने के ) दोष को नहीं
डरता, ( क्योकि पुनरुक्ति दोष माना गया है । । उन राम का रूप-दर्शन
अणिमा सिद्धि देता है, उनका गुणगान गरिमा सिद्धि प्रदान करता है,
उनकी भक्ति महिमा प्रदान करती है और उनका नाम मुक्ति प्रदान
करता है।
सवैया
जो शतयज्ञ करे करी इद्रसो, सो प्रभुता कपिपुज सों कीनी ।
ईश दई जु दये दशशीश, सुलक विभीषणै ऐसेहि दीनी ॥
दानकथा रघुनाथ की केशव, को बरनै रस अद्भुत भीनी ।
जो गति अरवरेतन की सुतो औधके सूकर कूकर लीनी ॥७३॥
___ जो प्रभुता इन्द्र को सौ यज्ञो के करने पर दी, वह बन्दरो को यो ही
प्रदान कर दी । जिस लका को शिवजी ने रावण को अपने दशो शिरो
को चढाने पर दिया, उसे उन्होने विभीषण को ऐसे ही दे दिया।
'केशवदास' कहते है कि इसलिए श्री रामचन्द्र की अद्भुत रस मे सनी
हुई दान की कथा का कौन वर्णन कर सकता है ? जो गति उद्धरेता
अर्थात् योगियो को प्राप्त होती है, वही अयोध्या के सुअरो और कुत्तो
तक ने ( उनकी कृपा से ) प्राप्त कर लो।
राजा बलिका दान वर्णन |
सवैया
कैटभ मो, नरकासुर सो, पल मे मधु सो, मुर सो जेहि मारयो ।
लोक चतुर्दश रक्षक केशव, पूरण वेद पुराण विचारयो ।।
श्री कमला-कुच-कुकम मडन पडित देव अदेव निहारयो ।
सो कर मागन को बलि पै करतारहु को करतार पसारयो ॥७४।।
___जिस हाथ ने कैट, नरक, मधु और मुर जैसे राक्षसो को पल भर
में मार डाला। 'केशवदास' कहते हैं कि वेद तथा पुराणो मे जिसे
चौदहो लोको का रक्षक कहा है । जो हाथ श्री लक्ष्मी जी के कुच मडल
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१०४
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