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उदाहरण
कवित्त
कोकनद मोदकर मदनवदन किधी,
दशमुख मुख, कुबलय दुखदाई है।
रोधक असाधु जन, शोधक तमोगुण की,
उदित प्रबुद्धबुद्धि केशोदास' गाई है।
पावन करन पय हरिपद-पंकज के,
जगमगै मनु जगमग दरसाई है।
तारापति तेजहर तारका को तारक की,
प्रगट प्रभातकर ही की प्रभुताई है ॥२४॥
'केशवदास' कहते है कि यह प्रभाकर (सूर्य) की प्रभुताई है या
कामदेव का मुख है क्योकि जैसे सूर्योदय कोकनद (कमल ) के
लिए मोद कर ( आनन्द दायक ) होता है, वैसे ही कामदेव का मुख
कोकनद ( कोकशास्त्र पढने वालो को) को मोदकर ( आनन्ददायी ) है।
अथवा यह रावण का मुख है क्योकि जैसे वह कुबलय पृथ्वी मंडल को दुख
देने वाला है, वैसे यह भी कुवलय (कुमुदिनी) को दुखदायी है ।
अथवा यह प्रबोध-बुद्धि का उदय है क्योकि जिस प्रकार सूर्य की प्रभा
असाधु ( दुष्टो, चोरो, लुटेरो) को रोकने वाली होती है और तमोगुण
( अन्धकार ) को दूर करती है, उसी तरह प्रबोद्ध-बुद्धि (ज्ञान-बुद्धि का
उदय ) भी असाधुओ का रोधक (पापो से हटाने वाली) और तमोगुण की
शोधक होती है । अथवा यह सूर्य का प्रकाश है या श्रीविष्णु के चरण
कमल है क्योकि जैसे यह (सूर्य का प्रकाश) पेय (जल) को पवित्र करता
है, वैसे उनके (श्रीविष्णु के) चरण-कमल भी करते हैं। अथवा यह मनु
महाराज की जगमगाती हुई ज्योति है क्योकि सूर्य को प्रभा जैसे जग-
मग ( ससार का मार्ग ) दिखलाती है, वैसे यह मनुमहाराज की ज्योति
भी जग-मग ( ससार के लोगो को धर्म का मार्ग दिखलाने वाली ) है।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/११९
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