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अथवा यह सूर्योदय है या वाडका के ताडक ( वाड़ना करने वाले,
श्रीराम हैं, क्योकि जैसे यह (सूर्योदय ) तारापति ( चन्द्रमा ) का
तेजहर ( तेज हरने वाला ) और तार का ( तारो या नक्षत्रो) का तारक
(ताडक या ताडन करने वाला है,) वैसे श्री रामचन्द्र भी तारापति ( तारा
के स्वामी बालि ) के तेज-हर (तेज को हरने वाले ) और तारका के
तारक ( ताडका को तारने वाले ) हैं ।
चन्द्रोदय वर्णन
दोहा
कोक, कोकनद, बिरहि, तम, मानिनि, कुलटनि दु.ख ।
चन्द्रोदयते कुवलयनि, जलधि, चकोरनि सुख ॥२५॥
चन्द्रोदय से कोक ( चकवा पक्षी), कोकनद ( कमल ), विरही,
तम ( अन्धकार ), मानिनी नायिका तथा कुलटाओ को दुख होता है और
कुबलय, समुद्र तथा चकोर पक्षी को सुख होता है।
उदाहरण
कवित्त
'केशोदास' है उदास कमलाकर सों कर,
शोषक प्रदोष ताप तमोगुण तारिये।
अमृत अशेष के विशेष भाव वरषत,
कोकनद मोद चंड खंडन विचारिये ।
परम पुरुष पद विमुख पुरुष रुख,
सनमुख सुखद विदुष उर धारिये।
हरि हैं री हिय में न हरिन हरिन नैनी,
चन्द्रमा न चन्द्रमुखी नारद निहारिये ॥२६।।
'केशवदास' कहते है कि श्रीरामचन्द्र चन्द्रमा की ओर देखकर
सीता जी से कहते है कि 'हे चन्द्रमा जैसे मुखवाली सीता | यह चन्द्रमा
नहीं है ? यह नो नारद दिखलाई पड़ते है क्योकि जिस प्रकार चन्द्रमा
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१२०
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