इसे सत्त्व गुण का सार या सत्य की शुभसत्ता या सिद्धियो की ख्याति अथवा सुबुद्धि की वृद्धि मानें। अथवा ज्ञान की गरिमा या विवेक का महत्त्व अथवा दर्शनशात्र का दर्शन ही समझें। या पुण्य का प्रकाश या वेदविद्या की शोभा अथवा (केशवदास कहते हैं कि) संसार मे यश का निवासस्थान माने। इसे कामदेव को मारने वाले (श्री शिव जी) के पुत्र (श्री गणेश जी) के मुख का दाँत मानें या विघ्नो को नष्ट करने का उपाय समझें।
ग्रन्थ-रचना-काल
दोहा
प्रगट पञ्चमी को भयो, कवि-प्रिया अवतार।
सोरह से अट्ठावनो, फागुन सुदि बुधवार॥४॥
नृप कुल बरनौ प्रथम ही, अरु कवि केशव वंश।
प्रगट करी जिन कवि-प्रिया, कविता को अवतंश॥५॥
संवत् १६५८ में फालगुन सुदि पंचमी बुद्धवार कवि प्रिया का आरंभ किया गया है। सबसे पहले इसमे राजवंश का वर्णन किया गया है। इसके बाद केशव कवि के वंश का वर्णन है जिन्होने कविता की शोभा इस 'कविप्रिया' की रचना की है।
नृपवश वर्णन
ब्रह्मादिक की विनय ते, हरण सकल भुविभार।
सूरजवंश करयो प्रगट, रामचन्द्र अवतार॥६॥
तिनकेकुल कलिकालरिपु, कहि केशव रणधीर।
गहरवार विख्यात जन, प्रगट भये नृप वीर॥७॥
करण नृपति तिनके भये, धरणी धरमप्रकास।
जीति सबै जगती करयो, वाराणसी निवास॥८॥
प्रगट करणतीरथ भयो, जगमें तिन के नाम।
तिनके अर्जुनपाल नृप, भये महोनी ग्राम॥९॥