के कर (किरणे) कमलो के समूह से उदासीन रहते है, उसी प्रकार नारद
के हाथ भी धन समूह से विरक्त रहा करते हैं। जिस प्रकार, चन्द्रमा
प्रदोष ( सध्याकाल ) और ताप, ( गरमी ) का शोषक (नाश करने वाला)
तमोगुण (अधकार ) की ताडना करने वाला होता है, उसी प्रकार नारद
भी प्रदोष (बडे-बडे दोष) और ताप (दैहिक, दैविक, भौतिक)
दूर करते है और तमोगुण अर्थात् अज्ञान को हटाते है। चन्द्रमा, जिस
प्रकार अशेष (परिपूर्ण ) अमृत को बरसाता है, उसी प्रकार नारद भी
अमत ( अमर ) और अशेष (परिपूर्ण ) श्रीविष्णु भगवान् के भाव अर्थान्
चरित्रो की बरसाया करते है अर्थात् उनका चरित्रगान किया करते है ?
जिस प्रकार चन्द्रमा चक्रवाको की ध्वनि के आनन्द का प्रचड खडन
करने वाला है, उसी प्रकार नारद भी कोक-शास्त्र के शब्दो के आनन्द
के प्रचड खडनकर्ता हैं अर्थात् विषयचर्चा के विरोधी है । जिस
प्रकार चन्द्रमा परम पुरुष अर्थात् पति के पदो (चरणो ) से विमुख या
रूठी हुई माननी नायिका से परुष ( कठोर ) रुख प्रवृत्ति ) रखता
है, उसी प्रकार नारद भी परम पुरुष अर्थात् श्री विष्णु भगवान से विमुख
जनो से पुरुष रुख ( कठोर प्रवृत्ति ) रखते है । हे मृगनयनी । और जो यह
काला दाग दिखलाई पडता है, वह हरिण नहीं है प्रतुत श्याम कान्ति
धारण करने वाले विष्णु है जो नारद के हृदय म निवास करते है ।
षटऋतु वर्णन
(१) बसन्त
दोहा
वरणि बसत सपुहुप अलि, बिरहि विदारण वीर ।
कोकिल कलरव कलितबन, कोमल सुरभि समीर ॥२७॥
वसत मे सुन्दर पुष्प, भौरे कोयल की ध्वनि, सुन्दर वन, कोमल
अर्थात् मद और सुरभि अर्थात् सुगधित वायु का वर्णन करना चाहिए
क्योकि ये वस्तुएँ वियोगियो के हृदयो को विदारण करने वाले बसन्त
के वीर योद्धा है।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१२१
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