मतवाले हो जाते हैं और मदयुक्त होने के कारण उनके मस्तको पर भौंरे मडराते रहते है। परभृत अर्थात् कोयलो को बोली सुनकर सभी सन्त और असन्त सुखी होते है। अमल (निर्मल) और अदल (अद्वितीय) रूप मजरी (सुन्दरी स्त्रियो) के पदरज से सुशोभित अशोक के वृक्षो को देखते ही दुख नष्ट हो जाते है और सब प्रकार के सुमन (फूल) फूलते है।
(२) ग्रीष्म वर्णन
दोहा
ताते तरल समीर मुख, सूखे सरिता ताल।
जीव अबल जल थल विकल, ग्रीषम सफल रसाल॥२९॥
ग्रीष्मऋतु मे गर्म और चचल वायु बहती है। लोगो के मुख, नदी और तालाब सूखने लगते हैं। जल-थल के जीव-जन्तु अशक्त और व्याकुल हो जाते हैं। केवल रसाल अर्थात् आम ही सफल होता है अर्थात् गर्मी की ऋतु मे केवल आम ही फलता है।
उदाहरण
कवित्त
चंडकर कलित, बलित वर सदागति,
कंद मूल, फ्लफूल दलनि को नासु है।
कीच बीच बचै मीन, व्याल बिल कोल कुल,
द्विरद दरीन दिनकृत को विलासु है।
थिर, चर जीवनहरन, वन वन प्रति,
'केशौदास' मृगशिर श्रवन निवासु है।
धावत बली धनुस, सोहत निपानिसर,
शवर समूह कैधो ग्रीषम प्रकासु है॥३०॥
यह शवर-समूह (भीलो या जङ्गली मनुष्यो का दल) है या ग्रीष्म ऋतु? क्योकि जिस प्रकार शवर समूह चडकर कलित (बलवती भुजाओ से युवत) और बलिववर (बल से युक्त और सदागति ( सदा घूमने