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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१२७

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देवता और मनुष्य सभी उनको बदना करते है और वह कुबलय अर्थात् पृथ्वी मडल को वर दिया करती है अथवा बल प्रदान करती हैं। उनके पवित्र चरणो मे सुन्दर भूषण सुशोभित होते है और उनके मोतियो के हार की चमक सुन्दर है तथा चारो दिशाओ मे छाई हुई है। उनके तिलक की चमक भी सुन्दर है और नेत्र कमल जैसे हैं तथा नीलाम्बर मे उनसे पुष्ट कुच छिपे हुए हैं। उसी प्रकार.

शरद ऋतु का मुख शोभा युक्त है तथा चन्द्रमा जैसा है तथा वह मदन कर अर्थात् कामोद्दीपन करनेवाला है। नर-देव या राजा लोग शरद ऋतु की वदना करते है क्योकि इसी ऋतु मे वे विजय यात्रा को निकलते है। वह कुवलय (कमलो) को वरदाई अर्थात् बल देने वाली है। शरद् ऋतु मे, पवित्र स्थानो पर हसो की पक्तियां शोभा देती हैं और दिशाओ, दिशाओ मे कमलो की शोभा दिखलाई पडती है। तिलक वृक्षो की चमक आँखो को रुचिकर होती है तथा चारो ओर मनुष्यो को अच्छी लगती है। नीले विस्तृत आकाश में बादल लीन दिखलाई पडते है।

(५) हेमंत वर्णन

तेल, तूल, तांबूल तिय, ताप, तपन रतिवंत।
दीह रजनि लघु द्यौस सुनि, शीत सहित हेमंत॥३५॥

हेमन्त मे तेल, तूल (रूई), तिय (स्त्री), ताप (अग्नि), तपन (सूर्य) अच्छे लगते है और मनुष्य रतिवत (कामपीडित) हो जाते हैं। बातें बडी होती हैं और दिन छोटा होता है तथा शीत बहुत पडता है।

उदाहरण

कवित्त

अमल कमल दल लोचन ललित गति,
जारत समीर सीत, भीत दीह दुख की।
चंद्रक न खायो जाय, चंदन न लायो जाय,
चंदन चितयो जाय प्रकृति वपुष क्री।