श्राठवा-प्रभाव
राज्य श्री भूषण वर्णन
(दोहा)
राजा, रानी, राजसुत, प्रोहित, दलपति दूत ।
मत्री, मंत्र, पयान, हय, गय, संग्राम अभूत ॥१॥
आखेटक, जल केलि, पुनि, विरह, स्वयबर जानि ।
भूषित सुरतादिकनि करि, राज्यश्रीहि बखानि ॥२॥
राज्यश्री के वर्णन मे राजा, रानी, राजकुमार, पुरोहित, सेनापति,
दूत, मत्री, मत्र ( सम्मति), प्रयाण विजय करने के लिए सेना का
गमन ) घोडे, हाथी तथा अपूर्व सग्राम का उल्लेख करना चाहिए।
इनके अतिरिक्त आखेट, जल क्रीडा, वियोग, स्वयवर और सुरत आदि
विषयो का वर्णन भी करना चाहिए।
राजा वर्णन
प्रजा, प्रतिज्ञा, पुण्यपन, धर्म, प्रताप, प्रसिद्धि ।
शासन नाशन शत्रु के, बल विवेक की वृद्धि ॥३॥
दड, अनुग्रह, धीरता, सत्य, शूरता, दान ।।
कोश, देश युत बरणिये, उद्यम, क्षमा निधान ॥४॥
राजा का वर्णन करते समय प्रजा का ध्यान, दृढ प्रतिज्ञा, पुण्य
करने का प्रण, धर्म, प्रताप, प्रसिद्धि, शासन, शत्रुओ का नाश, बल और
विवेक की वृद्धि, दण्ड, अनुग्रह (दया), धीरता, सत्य, शूरता, दान, कोष,
देश, उद्यम (प्रयत्न) तथा रक्षा आदि विषयो का वर्णन करना
चाहिए।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१३१
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