लोग दूसरी स्त्रियो से प्रेम करते है, उन्हे क्षुद्र, अज्ञानी तथा राज्य के
नशे में चूर समझना चाहिए।
कवित्त
काम के है आपने ही, कामरति, काम साथ,
रति न रतिको जरी, कैसे ताहि मानिये ।
अधिक असाधु इन्द्र, इन्द्रानी अनेक इन्द्र,
ओगवती, 'केशोदास' वेदन बखानिये ।
विविहू अरिधि कीनी, सावित्रीहू शाप दीनी,
ऐसे सब पुरुप युवति अनुमानिये ।
राजा रामचन्द जू से राजत न अनुकूल,
सीता ली न पतित्रता नारी उर आनिये ॥८॥
कामदेव और रति का साथ केवल अपने ही काम के लिए रहता
है अर्थात् अपने स्वार्थसाधन का ही साथ है, क्योकि ( कामदेव के
जलने पर । रति रत्तीभर भी नहीं जली. तब उसे पतिवता कैसे माना
जाय । इन्द्र बडे असाधु हैं और इन्द्रानी अनेक इन्द्रो से भोग करती है।
'केशवदास' कहते है कि यह बात तो वेद मे ही वर्णित है। ब्रह्मा ने
भी अनियमित कार्य किया (अपनी कन्या सरस्वती पर मन चलाया ),
और सावित्री । सरस्वती) ने भी शाप दिया (कि तुम्हारी पूजा न हुआ
करेगी)। इस तरह ज्ञान हुआ कि न तो राजा रामचन्द्र जी सा कोई
अनुकूल राजा है और न सीताजी के समान कोई दूसरी पतिव्रता
स्त्री है। .
राजकुमार वर्णन
दोहा
विद्या विविध विनोद युत, शील सहित आचार ।
सुन्दर, शूर, उदार बिभु, बरणिय राजकुमार ॥६॥
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१३४
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