पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१५

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( ५ )

तिनपर चढ़िआये जे रिपु, केशव गये ते हारि।
जिन पर चढ़ि आपुन गये, आये तिनहि सँहारि॥२३॥
सबलशाह अकबर अवनि, जीतिलई दिशि चारि।
मधुकरसाहि नरेश गढ़, तिन के लीन्हे मारि॥२४॥
खान गनै सुल्तान को, राजा रावत बाद।
हारयो मधुकरसाहि सों, आपुन साहिमुराद॥२५॥
साध्यो स्वारथ साथही, परमारथ सो नेह।
गये सो प्रभु वैकुँठमग, ब्रह्मरन्ध्र तजि देह॥२६॥
तिनके दूलहराम सुत, लहुरे होरिलराउ।
रिपुखण्डन कुलमण्डनौ, पूरण पुहुमि प्रभाउ॥२७॥
रनरूरो नरसिंह पुनि, रतनसेनि सुनि ईश।
बांध्यो आपु जलालदी, बानो जाके शीश॥२८॥
इन्द्रजीत, रणजीत पुनि शत्रुजीत बलबीर।
बिरसिंह देव प्रसिद्ध पुनि, हरिसिहौ रणधीर॥२९॥
मधुकरसाहि नरेश के, इतने भये कुमार।
रामसिंह राजा भये, तिन के बुद्धि उदार॥३०॥
घर बाहर वरणहि तहॉ, केशव देश विदेश।
सब कोई यहई कहै, जीतै राम नरेश॥३१॥
रामसाहि सों शूरता, धर्म न पूजै आन।
जाहि सराहत सर्वदा, अकबर सो सुलतान॥३२॥
कर जोरे ठाढ़े तहाँ, आठौ दिशि के ईश।
ताहि तहाँ बैठक दियो, अकबर सो अवनीश॥३३॥
जाके दरशन को गये, उघरे देव किवॉर।
उपजी दीपति दीप की, देखति एकहिबार॥३४॥
ता राजा के राज अब, राजत जगती मॉह।
राजा, रानी; राउ सब, सोवत जाकी छॉह॥३५॥