सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १४३ )

उदाहरण

(कवित्त)

पूरन कपूर पान खाये जैसी मुख-बास,
अधर अरुण रुचि सुधा सों सुधारे है।
चित्रित कपोल, लोल लोचन, मुकुट, ऐन,
अमल झलक, झलकनि मोहि मारे है।
भृकुटी कुटिल जैसी न करहू होसिं,
आंजी ऐसीआंखै 'केशौराय' हेरि हारे है।
काहे के सिगार कै बिगारति है मेरी आली,
तेरे अङ्ग बिनाही सिड़्गार के सिड़्गारे हैं॥१२॥

तेरे मुख की सुगंध कपूर (अथवा पान खाये हुए मुख की तरह है।) तेरे लाल ओठ मानो अमृत मे सने हुए है। तेरे चित्रित गालो तथा चचल नेत्रो ने अपनी निर्मल झलक से दर्पण तथा हिरणो को मोहित करके मार डाला है। तेरी भौंहे ऐसी टेढी है कि वैसी बनाने पर भी नहीं बन पातीं। आँखें मानो काजल लगी हुई सी है जिन्हे देख केशवराय (श्रीकृष्ण) भी हार गये है। हे सखी! तू श्रृगार करके अपने अगो को क्यो बिगाडती है? तेरे अग तो बिना श्रृगार किये ही श्रृगार किये से जान पड़ते है।

विभावना दूसरी

दोहा

कारण कौन हु आनते, कारज होय जु सिद्ध।
जानौ अन्य विभावना, कारण छोड़ि प्रसिद्ध॥१३॥

जहाँ प्रसिद्ध कारण को छोडकर किसी दूसरे कारण से कार्य सिद्ध होता है, वहाँ दूसरे प्रकार की विभावना समझो।