उदाहरण
सवैया
नेकहू काहू नवाई न वानी, नबाये बिनाही सुवक्र भई है।
लोचनश्री विमुकाये बिना, विझुकीसी बिना रॅगरागमई है॥
केशव कौनकी दीनी कहो यह, चद्रमुखी गति मद लई है।
छोली न, होहि गई कटि छीन सुयौवन की यह युक्ति नईहै॥१४॥
उसको वारणी को किसी ने नवाया (झुकाया) नहीं है, बिना झुकाये ही यह टेढी हो गई है। इसी तरह ऑखो की शोभा भी बिना चचल किए ही चचल हो रही है और बिना रंग के ही रजित सी प्रतीत हो रही है। 'केशवदास' कहते है कि बतलाओ, इस चन्द्रमुखी ने किसकी दी हुई मदचाल प्राप्त की है? अर्थात् इसकी यह धीमी चाल किसकी दी हुई है? बिना छीले ही इसकी कमर क्षीण हो चली है। यौवन (युवावस्था) की यह युक्ति अद्भुत है।
३---हेतु
हेतु होत है भांति द्वै, वरणत सब कविराव।
'केशवदास' प्रकाश करि, वरणि सुभाव अभाव॥१५॥
'केशवदास' कहते है कि सभी कविराज 'हेतु' को दो तरह का बतलाते हैं। एक 'अभाव' और दूसरा सभाव।
उदाहरण-१
सभाव
केशव चंदनवृंद घने, अरविदन के मकरंद शरीरो।
मालती, बेलि, गुलाब सुकेतकी केतिक चपक को बन पीरो॥
रंभनि के परिरभन संभ्रम, गर्व घनो घनसार को सीरो।
शीतल मन्द सुगन्ध समीर हरयो इनसो मिली धीरज धीरो॥१॥
केशवदास' कहते है कि चदन से सुगन्धित होकर कमलो का मकरद अपने शरीर मे लेकर, मालती, बेला, गुलाब, केतकी तथा चपक के पीले बन से लदने के कारण मन्द होकर और दौड-दौडकर केलो से