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मिलकर, उनके कपूर की शीतलता का गर्व हरण करने से शीतल होकर,
शीतल मन्द, सुगन्ध वायु ने इनका दृढ धैर्य हर लिया । ( भाव यह है
कि वायु ने स्वतः धैर्य हरण नहीं किया प्रत्युत ऊपर लिखे हुए हेतुओ
से ही उसे इतना बल प्राप्त हुआ।)
उदाहरण-२
___ अभावहेतु।
जान्यो न मै यौवनको, उतरथो कब काब को काम गयोई ।
छांड न चाहत जीव कलेवर, जोरि कलेवर छाडि दयोई॥
आवत जाति जरा दिन लीलति रूप जरा सब लीलि लयोई।
केशव राम ररौ न ररौ अनसाधेही सामन साध भयोई ॥१७॥
मेने जान ही न पाया कि युवावस्था का मद कब उतर गया । काम
की भावनाएँ कब लुप्त हो गई। जीव, शरीर को छोडना ही चाहता
है और शरीर ने शक्ति को छोड ही दिया है । आते-जाते दिनो को
जरा ( वृद्धावस्था ) लीलती जाती है। जरा ( वृद्धावस्था ) ने सारे
सौंयंद को लील ही लिया है। 'केशवदास' कहते हैं कि मै राम रटू या
न रटू, बिना साधन किये ही ( वृद्धावस्था के कारण ) साधु तो हो
ही चुका हूँ।
उदाहरण-३
सभाव-अभाव हेतु
जादिनते वृषभानलली ही अली मिलये मुरलीधर तेही ।
साधन साधि अगाधि सबै, बुधि शोधि जे दूत अभूतन मेंही।
ता दिनते दिनमान दुहन को केशव आवति बातै कहेही ।
पीछे अकाश प्रकाशै शशी, चढ़ि प्रेम समुद्र बढ़े पहिलेही ॥१८॥
जिस दिन से सखी ने राधा को, अनेक साधनो को काम में लाकर
अभूतपूर्व दूतो की बुद्धिमानी से, श्रीकृष्ण से मिला दिया, उसी दिन
से, 'केशवदास' कहते है कि दोनो के मान अभिलाषाओ) के मान ऐसे
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