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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१६९

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अपनी स्त्री रात्रि के काजल से ही यह रगा हुआ है। यह तमपान ( पिये हुए अधकार ) की झलक भी नहीं है। न पृथ्वी की छाया है और न इस चन्द्रमा में छेद ही है, जिससे नीले आकाश की छाया दिखलायी पड़ती हो। 'केशवदास' (श्रीहनुमान जी की ओर से) कहते है कि 'हे कृपानिधान! श्रीरामचन्द्र उस दाग को देखिए! ओर मुझ बनचारी के बचनो को इस सबध मे सच मानिए। मेरी समझ मे दिग्गजो तथा दिग्पालो के कठो से निकली हुई आपकी कीर्ति को सुनकर चन्द्रमा को उत्पन्न हुई ईर्ष्या का यह काला दाग है।