फिर ( पांचवे ) शत्रुओ को जीतने वाले इन्द्रजीत और ( छठवे ) बलवान शत्रुजीत थे तथा (सातवे) प्रसिद्ध वीरसिह देव और ( आठवे ) रणधीर हरिसिह देव थे । मधुकरशाह के इतने पुत्र हुए उनमें रामसिह राजा हए जो बडी उदारबुद्धि वाले थे । उनकी घर-बाहर तथा देश-विदेश सभी स्थानो मे, लोग प्रशसा करते हुए यही कहा करते थे कि राजा रामचन्द्र सिह सदा विजयी रहते हैं। रामसिंह से वीरता और धार्मिकता मे, कोई दूसरा बराबरी नहीं कर सकता था। और जिनकी प्रशसा स्वय सुलतान अकबर करते थे। जहाँ पर आठो दिशामओ के राजा हाथ जोडे खडे रहते थे, वहां पर अकबर जैसे बादशाह ने उन्हें सम्मानपूर्वक बैठाया था। जिनके (श्री बद्रीनाथ) जी के) दर्शनार्थ जाने पर देव-मन्दिर के दरवाजे स्वय खुल गये थे और उनके एक बार देखते ही दीपक मे भी ज्वाला उत्पन्न हो गई थी। उसी राजा का राज्य अब इस पृथ्वी पर सुशोभित हो रहा है और उसकी छाया ( आश्रय ) मे राजा, राना, राव, सभी सुखपूर्वक सोते हैं। उनके ग्यारह पुत्र हुए जिनमे सबसे बड़े संग्राम सिह थे, जिन्होने दक्षिण के राजा से सग्राम जीता था। उनके पुत्र भारतीशाह हुए जो भरतखन्ड की शोभा थे और जिन्हे लोग भरत भगीरथ और अर्जुन की उपमा दिया करते थे। यद्यपि राजा रामसिह के बेटे, भाई तथा और बहुत सा परिवार था तथापि राज-काज का सारा मार इन्द्रजीत पर था। वह कल्प-वृक्ष से दानी, समुद्र के समान गम्भीर, सूर्य जैसी तेजस्वी और अजुन जैसे रण-धीर थे । राजा रामसिह ने उन्हे अपना कछोवागढ प्रदान किया था जहाँ बैठ कर वह शत्रु और मित्र से यथाविधि वर्ताव करते थे। कियो अखारो राज को, शासन सब संगीत । ताको देखत इन्द्र ज्यों, इन्द्रजीत रणजीत ॥४१।। बाल वयक्रम बाल सब, रूप शील गुण बृद्ध । यदपि भरो अवरोध षट, पातुर परम प्रसिद्ध ।।४।।