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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१८

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रायप्रवीण प्रवीण अति, नवरगराइ सुवेश।
अति विचित्र नैना निपुण, लोचन नलिन सुतेश॥४३॥
सोहत सागर राय की, तानतरग तरग।
रगराइ रॅगवलित गति, रँगमूरति अँग अँग॥४४॥
तन्त्री, तुम्बुर, सारिका, शुद्धि सुरिन सों लीन।
देवसभा सी देखिये, रायप्रवीण प्रवीन॥४५॥
सत्या, रायप्रवीणयुत, सुरतरु, सुरतरु गेह।
इन्द्रजीत तासो बँध्यो, केशवदास सनेह॥४६॥
सुरी, आसुरी, किन्नरी, नरी राहति सिरु नाइ।
नवरस नवधाभक्ति स्यो, शोभित नवरँग राइ॥४७॥
हाव-भाव संभावना, दोला सम सुखदाय।
पियमन देति झुलाय गति, सपारस नवरंगराय॥४८॥
भैरवयुत गौरी सँयुत, सुतरगिनी लेखि।
चन्द्रकला सी सोहिये, नैनविचित्रा देखि॥४९॥
नैन बैन रति सैन सम, नैनविचित्रा नाम।
जयन शील पति मैन मन, सदा करति विश्राम॥५०॥
नागरि सारि राग की, सागर तानतरंग।
पनि पूरणशशि दरसि दिन, बाढ़ति तान तरग॥५१॥
तानति तानतरग की, तन मन बेधति प्राण।
कलाकुसुमशर शरन की, अति अयानि तनत्राण॥५२॥
रंगराय की आंगुरी, सकल गुणनि की मूरि।
लागत मूँढ मृदग मुख, शब्द रहत भर पूरि॥५३॥
रगरायकर सुरजमुख, रँगमूरति पद चारु।
मानो पढ़यो है साथ ही, सब संगीत विचारु॥५४॥
अंग जिते संगीत के, गावत गुणी अनंत।
रॅगमूरति अँग अँग प्रति, राजन मूरतिवंत॥५५॥