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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१७२

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( १५७ )

उदाहरण

कवित्त

ज्यों ज्यों बहु बरजी मै, प्राणनाथ मेरे प्राण,
अग न लगाइये जू, आगे दुख पाइबो।
त्यों त्यों हँसि हँसि अति शिर पर उर पर,
कीबो कियो ऑखिन के ऊपर खिलाइबो।
एकौ पल इत उत साथ ते न जान दीन्हे,
लीन्हे फिर हाथ ही कहां लौ गुणगाइबो।
तुमतो कहत तिन्है छाड़ि के चलन अब,
छांड़त ये कैसे तुम्है आगे उठि धाइबो॥८॥

(परदेश जाते हुए अपने स्वामी से, उसकी भार्या कहती है कि) हे प्राणनाथ! मैं आपको जैसे-जैसे मना किया था कि मेरे प्राणो को अग न लगाइये, क्योकि इसमे आगे दुख मिलेगा, वैसे-वैसे अपने इन प्राणो को, हँस हँसकर, शिर, हृदय और आँखो पर खेलाया किये। आपने इन्हे एक पल के लिए भी अपना साथ छोड कर इधर उधर नहीं जाने दिया और इन्हे हाथो मे लिए ही घूमा किए। मै कहाँ तक आपकी प्रशसा करूँ। अब आप इन्हे छोडकर चलने की बात कहते है। सो ये आपको भला कैसे छोडेगे। आप जाने के पहले ही उठ दौडेगे।

२-अधैर्याक्षेप

दोहा

प्रेम भग पच सुनत जहँ, उपजत सात्त्विकभाव।
कहत अधीरजको सुकवि, बह आक्षेप स्वभाव॥६॥

जहाँ पर प्रेम-भग की बात सुनते ही, सात्विक भाव उत्पन्न हो जाय वहाँ सुकवि गण उसे अधैर्याक्षेप कहते है।