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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१७३

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उदाहरण

सवैया

केशव प्रात बड़ेही बिदाकहँ आये प्रियापहँ नेह नहेरी।
आवों महावनह्वैजु कहौ,हॅसि बोल द्वै ऐसे बनाय कहेरी॥
को प्रतिउत्तर देइ सखी सुनि, लोलविलोचन यो उमहेरी।
सौहक कै हरि हार रहे अधिरातिके लौ अँसुवा नरहेरी॥१०॥

बडे प्रातः काल केशव ( श्रीकृष्ण ), प्रेम मे भरे हुए, अपनी प्रिया ( राधा ) के पास बिदा मागने के लिए आये और जैसे ही, हॅसते हुए, बाते बनाकर, बोले कि 'मैं महावन हो आऊँ'। वैसे ही, हे सखी! उत्तर कौन देता। उसकी आँखो मे तो इतने आँसू उमड़ आये कि आधी रात तक न रुके और कृष्ण शपथ खा खाकर ( कि मैं न जाऊँगा ) थक गये।

३–वैर्याक्षेप (दोहा)

कारज करि कहिये वचन, काज निवारन अर्थ।
धीरज को आक्षेप यह, बरणत बुद्धि समर्थ॥११॥

कार्य को रोकने के लिए, जहाँ सकारण बात कही जाय, वहाँ बुद्धिमान लोग, उसे धैर्याक्षेप कहते हे।

उदाहरण

कवित्त

चलत चलत दिन बहुत व्यतीत भये,
सकुचत कत चित चलत चलाये ही।
जात है ते कहौ कहा नाहिनै मिलत आनि,
जानि यह छांडौ मोह बढ़त बढ़ाये ही।
मेरी सौ तुमहि हरि रहियौ सुखहि सुख,
मोहूँ है तिहारी सौहँ रहौ सुख पाये ही।
चलेही बनत जो तो चलिये चतुर प्रिय,
सोवत ही जैयो छॉड़ि जागौगीहौ आये ही॥१२॥