पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१७४

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चलने की चर्चा चलाते हुए आपको अनेक दिन हो गये है। अब सकोच किस बात का है, मन तो हटाने से हटाता है। जो विदेश जाया करते है, कहिए, वे क्या फिर वापस आकर नहीं मिलते ? यही समझ कर मोह छोडिये, क्योकि मोह तो बढाने से ही बढता है। आपको मेरी शपथ है, आप सुख पूर्वक निश्चिन्त होकर रहिएगा और मै भी आपकी शपथ खाती हूँ कि मै सुग्व पूर्वक रहूँगी। हे चतुर प्रियतम | यदि जाना ही है तो जाइए। मुझे आप सोते हुए छोड जायेगे, आपके आने पर ही में जागूंगी। ४-सशयाक्षेप दोहा उपजाये सदेह कछु, उपजत काज विरोध । यह संशय आक्षेप कहि, बरणत जिन्है प्रबोध ॥१३॥ ___ जहाँ पर कुछ सदेह उत्पन्न कर देने पर कार्य का विरोध उत्पन्न हो जाय, उसे जानकार लोग सशयाक्षेप कहते है । उदाहरण कवित्त गुनन वलित, कल सुरन कलित माय, ललिता ललित मीत श्रवण रचाइहै। चित्रनी हौ चित्रन मे परम विचित्र तुम्है, चित्रन में देखि देखि नैनन नवाइहै। कामके विरोधी मत शोधि शोधि साधि सिद्धि, बोधि बोधि अवधि के वासर गॅवाइहै । केशोराय की सौ मोहि कठिन यहै है वा की, रसनै रसिक लाल पान को खवाइहै ॥१४॥ आपके गुणो से युक्त गीतो को सुन्दर स्वरो से गा-गाकर ललिता सखी उसके कानो को प्रसन्न करेगी। मै चित्रनी अर्थात् चित्र खींचने