सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १६० )

वाली हू, तुम्हारा बहुत ही अद्भुत चित्र बनाऊँगी तो चित्रो में तुम्हारी अद्भुत मूर्ति को देख-देख कर वह ऑखो को नीचा कर लिया करेगी। सिद्धि नाम की सखी काम-विरोधी मतो की खोज कर-कर के उसे उपदेश देती हुई किसी प्रकार अवधि के दिनो को बितावेगी। परन्तु हे रसिक लाल केशवराय ईश्वर की शपथ मुझे कठिनाई यही है कि उसकी जीभ को पान कौन खिलावेगा?

मरणाक्षेप

कवित

मरण निवारण करत जहँ, काज निवारण होत।
जानहु मरणाक्षेप यह जो जिय बुद्धि उदोत॥१५॥

जहाँ मरण भू निवारक शब्दो द्वारा जहाँ व्यगपूर्वक कार्य मे बाधा डाली जानी है । वहाँ मरणाक्षेप समझना चाहिए।

उदाहरण

दोहा

नीके के किंवार दैहौ, द्वार द्वार दर वार,
केशोदास आस-पास सूरज न आवैगो।
छिन में छवाय लैहौ, ऊपर अटानि आजु,
आंगन पटाय देहो, जैसे मोहिं भावैगो।
न्यारे न्यारे नारिदान मूदिहौ झरोखे जाल,
जाइ है न,पानी, पौन आवन न पावैगो।
माधव तिहारे पीछे मो पहँ मरण मूढ़,
आवन कहत सो धौ कौन पैड़े आवैगो॥१६॥

( 'केशवदास' गोपी की ओर से श्रीकृष्ण से कहते है कि ) मै छोटे-बडे सभी दरवाजो के किवाड बन्द कर दूंगी जिससे सूर्य भी पास न फटकने पावेगा। कार को सभी अट्टालिकाओ के आज क्षण भर मे पटा दूगी और जैसा मुझे अच्छा लगेगा वैसा आँगन भी पटवा दूगो। मोरी,