वाली हू, तुम्हारा बहुत हो अद्भुत चित्र बनाऊँगी तो चित्रो में तुम्हारी
अद्भुत मूर्ति को देख-देख कर वह ऑखो को नीचा कर लिया करेगी।
सिद्धि नाम की सखी काम-विरोधी मतो की खोज कर-कर के उसे उपदेश
देती हुई किसी प्रकार अवधि के दिनो को बितावेगी । परन्तु हे रसिक
लाल केशवराय ईश्वर की शपथ मुझे कठिनाई यही है कि उसकी जीभ को
पान कौन खिलावेगा?
५-मरणक्षेप
कवित
मरण निवारण करत जह, काज निवारण होत ।
जानहु मरणाक्षेप यह जो जिय बुद्धि उदोत ॥१५॥
जहाँ मरण भू निवारक शब्दो द्वारा जहाँ व्यगपूर्वक कार्य मे बाधा
डाली जानी है । वहाँ मरणाक्षेप समझना चाहिए ।
उदाहरण
दोहा
नीके के किंवार दैहौ, द्वार द्वार दर वार,
केशोदास आस-पास सूरज न आवैगो ।
छिन में छवाय लैहौ, ऊपर अटानि आजु,
आंगन पटाय देहो, जैसे मोहिं भावैगो।
न्यारे न्यारे नारिदान मूदिहौ झरोखे जाल,
जाइ है न,पानी, पौन आवन न पावैगो।
माधव तिहारे पीछे मो पहें मरण मूढ़, .
आवन कहत सो धौ कौन पैड़े आवैगो ॥१६॥
('केशवदास' गोपी की ओर से श्रीकृष्ण से कहते है कि ) मै छोटे-
बडे सभी दरवाजो के किवाड बन्द कर दूंगी जिससे सूर्य भी पास न
फटकने पावेगा। कार को सभी अट्टालिकाओ के आज क्षण भर मे पटा
दूगी और जैसा मुझे अच्छा लगेगा वैसा आँगन भी पटवा दू गो। मोरी,
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१७५
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