पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१७६

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झरोखो तथा जालो को अलग-अलग बन्द करवा दूँगी जिससे न तो पानी जा सकेगा और न हवा आ सकेगी। हे माधव! यह मूर्ख मरण तुम्हारे चले जाने पर जो आने की बात कहता है, सो अब बतलाओ! किस माग से आवेगा?

६-आशिषाक्षेप

दोहा

आशिष पियके पंथ को, देवै दुख दुराय।
आशिषको आक्षेप यह, कहत सकल कविराय॥१७॥

प्रियतम के आशीष अर्थात् कुशल-क्षेम के लिए जब अपना दुख छिपा लिया जाता है, तब कवि लोग उसे आशिषाक्षेप कहते है।

उदाहरण

कवित्त

मत्री, मित्र, पुत्र जन केशव कलत्र गन,
सोदर सुजन जन भट सुख साज सों।
एतो सब होत जात जो पै है कुशल गात,
अबही चलौ के प्रति सगुन समाज सौ।
कीन्हों जो पयान बाध, छमिये सो अपराध,
रहिये न पल आध, बँधिये न लाज सों।
हौ न कहौ, कहत निगम सब अब तब,
राजन परमहित आपने ही काज सों॥१८॥


( 'केशवदास' किसी स्त्री की ओर से कहते है कि ) मत्री, मित्र, पुत्र, स्त्री, सगे भाई, स्वजन योद्धा और सुख का समाज ये सब तो, यदि शरीर कुशल से रहे, तो होते जाते रहते हैं। इसलिए या तो आज अथवा प्रात काल आप शकुन मुहूर्त-लेकर चले जाइए। मैने जो आपके जाने मे बाधा उत्पन्न की थी, उस अपराध को क्षमा कीजिए और अब आधे पल के लिए भी न रहिए तथा न संकोच कीजिए।

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