पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१८३

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क्वाँर के महीने मे पहले तो पवित्र पितृगण घर पर पधारते है। फिर 'नवदुर्गा' पक्ष मे दुर्गाजी का पूजन करके, मनुष्य स्वर्ग और अपवर्ग प्राप्त करते है। राजा लोग, छत्र धारण करके, और पुरोहित को साथ मे लेकर, पृथ्वी पूजन करते है। (केशवदास पत्नी की ओर से कहते हैं कि) आकाश निर्मल हो जाता है, और जलाशय कमलो से सुशोभित हो जाते हैं। चन्द्रमा को चाँदनी से रात सून्दर लगने लगती है और रमारमन (श्रीकृष्ण) को भी रास मे रुचि होने लगती है। अत हे पतिदेव! सुन्दर केलि-रूपी कल्पतरु क्वॉर के महीने मे विदेश जाने की मति (विचार) न कीजिए।

८-कार्तिक वर्णन

वन; उपवन, जल, थल, अकाश, दीसंत दीपगन।
सुखही सुख दिन राति जुवा खेलत दंपतिजन॥
देवचरित्र विचित्र चित्र, चित्रित आंगन घर।
जगत जगत जगदीश ज्योति, जगमगत नारि नर॥
दिनदानन्हान गुनगान हरि, जनम सफल कर लीजिये।
कहि केशवदास विदेशमति कन्त न कातिक कीजिये॥३१॥

कार्तिक मे, वन, उपवन, जल, थल और आकाश सब जगह दीपक ही दीपक दिखलाई पडते है। रात-दिन सुख ही सुख दिखलाई पडता है और पति-पत्नी मिलकर जुआ खेलते है, अथवा आनन्द मे भरे हुए दपति रात-दिन जुआ खेला करते है। देवताओ के चरित्रो के अद्भुत अद्भुत चित्रो से घरो के आंगन चित्रित रहते हैं। जगदीश की ज्योति से सारा ससार जग उठता है (क्योकि इसी महीने देवोत्थान होता है)। (स्त्री पुरुष सब प्रसन्न हो उठते हैं) अत इस कार्तिक के दिनो दान, स्नान, और हरि गुण गान करके अपना जन्म सफल कीजिए और (केशवदास-पत्नी की ओर से कहते है कि) हे कन्त! कार्तिक मे विदेश जाने का विचार मत कीजिए।