( १६८ )
क्वार के महीने मे पहले तो पवित्र पितृगण घर पर पधारते है ।
फिर 'नवदुर्गा' पक्ष मे दुर्गाजी का पूजन करके, मनुष्य स्वर्ग और अपवर्ग
प्राप्त करते है। राजा लोग, छत्र धारण करके, और पुरोहित को साथ
मे लेकर, पृथ्वी पूजन करते है । ( केशवदास पत्नी की ओर से कहते
हैं कि ) आकाश निर्मल हो जाता है, और जलाशय कमलो से सुशोभित
हो जाते हैं। चन्द्रमा को चाँदनी से रात सून्दर लगने लगती है और
रमारमन ( श्रीकृष्ण ) को भी रास मे रुचि होने लगती है। अत हे
पतिदेव । सुन्दर केलि-रूपी कल्पतरु क्वॉर के महीने मे विदेश जाने की
मति (विचार) न कीजिए।
-कार्तिक वर्णन
वन; उपवन, जल, थल, अकाश, दीसंत दीपगन ।
सुखही सुख दिन राति जुवा खेलत दंपतिजन ॥
देवचरित्र विचित्र चित्र, चित्रित आंगन घर ।
जगत जगत जगदीश ज्योति, जगमगत नारि नर ॥
दिनदानन्हान गुनगान हरि, जनम सफल कर लीजिये।
कहि केशवदास विदेशमति कन्त न कातिक कीजिये ॥३१॥
कार्तिक मे, वन, उपवन, जल, थल और आकाश सब जगह
दीपक ही दीपक दिखलाई पडते है । रात-दिन सुख ही सुख दिखलाई
पडता है और पति-पत्नी मिलकर जुआ खेलते है, अथवा आनन्द मे भरे
हुए दपति रात-दिन जुआ खेला करते है । देवताओ के चरित्रो के अद्भुत
अद्भुत चित्रो से घरो के आंगन चित्रित रहते हैं । जगदीश की ज्योति से
सारा ससार जग उठता है ( क्योकि इसी महीने देवोत्थान होता है)।
स्त्री पुरुष सब प्रसन्न हो उठते हैं ) अत इस कार्तिक के दिनो दान,
स्नान, और हरि गुण गान करके अपना जन्म सफल कीजिए और
( केशवदास-पत्नी की ओर से कहते है कि ) हे कन्त ! कार्तिक मे विदेश
जाने का विचार मत कीजिए।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१८३
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
