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९-मार्गशीर्षवर्णन

मासनमे हरिअंस कहत यासों सव कोऊ।
स्वारथ परमारथन देत भारतमॅह दोऊ।
केशव सरिता सरनि फूल फूले सुगन्ध गुर।
कूजत कुल कलहंस कलित कलहं सनि के सुर॥
दिन परम नरम शीत न गरम करम करम यह पाइयतु।
करि प्राणनाथ परदेश को मारगशिर मारग न चितु॥३२॥

महीनो मे इस महीने को सब लोग हरि अश (भगवान का अश) मानते है। यह महीना भारतवर्ष मे, स्वार्थ तथा परमार्थ दोनो को देने वाला है। (केशवदास पत्नी की ओर से कहते है कि) नदियो और तालाबो मे सुगन्धित फूल फूलते है तथा सुन्दर हस तथा हसनियाँ मधुर-ध्वनि से कूजते है और इस महीने के दिन बडे सुखदायी होते है। न तो बहत ठड होते है। न बहुत गरम। बडे भाग्य से ये दिन मिलते है। अत. हे प्राणनाथ! मार्ग शीर्ष मे विदेश जाने का विचार न कीजिये।

१०-पूसवर्णन

शीतल, जल, थल, बसन, असन, शीतल अनरोचक।
केशवदास अकास अवनि शीतल असुमोचक॥
तेल, तूल, तामोल, तपन, तापन, नव नारी।
राजा रक सब छोड़ि करत इनही अधिकारी॥
लघुद्योस दीह रजनी रवन होत दुसह दुख रूसमें।
यह मन क्रम बचन बिचारि पिय पथ न बूझिय पूसमे॥३३॥

इसमे शीतल जल, थल, वसन और शीतल भोजन अच्छे नहीं लगते। (केशवदास पत्नी की ओर से कहते हैं कि) आकाश और पृथ्वी मारे ठड के दुखदायी हो जाते है। राजा से लेकर रक तक सभी लोग सब छोडकर इस ऋतु मे तेल, रुई, पान, घाम, अग्नि और नवीन स्त्री का ही सेवन करते है। दिन छोटा और रात बडी होती है, तथा रूठने