सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१७१)

फिर हँसते भी हैं और लज्जित नहीं होते। घर घर में युवती स्त्रियाँ युवकों को बलपूर्वक पकड़ कर गाँठ जोड़ती है और कपड़ छीनकर, मुख को मसल कर और आँखो मे काजल लगाकर व्यंगपूर्वक तिनके तोड़ती है (कि नजर न लग जाय)। सुगन्धित चूर्ण उड़कर आकाश और पृथ्वी सबको सुशोभित करता रहता है। अतः (केशवदास पत्नी की ओर से कहते हैं कि) इस विलास निधि फागुन के फाग को न छोड़िए।

—○—