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फिर हॅसते भी है और लज्जित नहीं होते। घर घर मे युवती स्त्रियाँ
युवको को बलपूर्वक पकड कर गाँठ जोडती है और कपडे छीनकर, मुख
को मसल कर और आँखो मे काजल लगाकर व्यगपूर्वक तिनके तोडती है
(कि नजर न लग जाय)। सुगन्धित चूर्ण उडकर आकाश और पृथ्वी
सबको सुशोभित करता रहता है। अत ( केशवदास पत्नी की ओर से
कहते है कि) इस विलास निधि फागुन के फाग को न छोडिए।