सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१७४)

सुख को छोड दो जो सपत्ति हीन हो। उस सपत्ति को छोड दो जो बिना दान की हो। उस दान को छोड दो जिसमे ब्राह्मणो का आदर न हो। उस ब्राह्मण को छोड दो जो धर्म-रहित हो। उस धर्म को छोड दो जहाँ राजा न हो। उस राजा को छोड दो, जो भूमि रहित हो। उस भूमि को छोड दो, जिसमे बिना किले और परकोटे के रहना पडे। और केशवदास कवि कहते है कि उस किले को छोड दो, जहाँ पूर्ण जल सुशोभित न होता हो।

९-गणना अलंकार

एक सूचक

दोहा

एक आत्मा, चक्र, रवि, एक शुक्रकी दृष्टि।
एकै दशन गणेशको, जानत सगरी सृष्टिं॥५॥

आत्मा, सूर्य के रथ का पहिया, शुक्राचार्य की दृष्टि और श्रीगणेश जी का दाँत ये एक के सूचक है--इसको सभी जानते है।

दो सूचक

दोहा

नदीकूल द्वै, रामसुत, पक्ष, खडगकी धार।
द्वैलोचन द्विजजन्म, पद, भुज, अश्विनीकुमार॥६॥
लेखनि डंक, मुजङ्गकी, रसना अयननि जानि।
गजरद मुखचुकरैड के, कच्छाशिखा बखानि॥७॥

नदी के किनारे, श्री रामचन्द्र जी के पुत्र, पक्ष, खड़्गकी धार, नेत्र, द्विजन्म (ब्राह्मण, पक्षी, दात आदि), चरण भुजाएँ, अश्वनीकुमार, लेखनी का डक (सेटें की कलम का मुँह जो बीच से चीर दिया जाता है) साप की जीभ, अयन (दक्षिणायन, उत्तरायन), हाथी के दाँत दुमुँहा साँप और कक्ष, शिखा ये दो सूचक माने जाते हैं।