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सुख को छोड दो जो सपत्ति हीन हो। उस सपत्ति को छोड दो जो बिना
दान की हो । उस दान को छोड दो जिसमे ब्राह्मणो का आदर न हो।
उस ब्राह्मण को छोड दो जो धर्म-रहित हो। उस धर्म को छोड दो जहाँ
राजा न हो। उस राजा को छोड दो, जो भूमि रहित हो। उस भूमि
को छोड दो, जिसमे बिना किले और परकोटे के रहना पडे । और
केशवदास कवि कहते है कि उस किले को छोड दो, जहाँ पूर्ण जल सुशो-
भिव न होता हो।
९-गणना अलंकार
एक सूचक
दोहा
एक आत्मा, चक्र, रवि, एक शुक्रकी दृष्टि ।
एकै दशन गणेशको, जानत सगरी सृष्टि ॥५॥
आत्मा, सूर्य के रथ का पहिया, शुक्राचार्य की दृष्टि और श्रीगणेश
जी का दांत ये एक के सूचक है - इसको सभी जानते है ।
दो सूचक
दोहा
नदीकूल द्वै, रामसुत, पक्ष, खडगकी धार ।
द्वैलोचन द्विजजन्म, पद, भुज, अश्विनीकुमार ॥६॥
लेखनि डंक, मुजङ्गकी, रसना अयननि जानि ।
गजरद मुखचुकरैड के, कच्छाशिखा बखानि ।।७।।
नदी के किनारे, श्री रामचन्द्र जी के पुत्र, पक्ष, खगकी धार, नेत्र,
द्विजन्म (ब्राह्मण, पक्षी, दात आदि), चरण भुजाएँ, अश्वनीकुमार,
लेखनी का डक ( सेटे की कलम का मुंह जो बीच से चीर दिया जाता
है). साप की जीभ, अयन ( दक्षिणायन, उत्तरायन), हाथी के दाँत
दुमुँहा साँप और कक्ष, शिखा ये दो सूचक माने जाते हैं।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१८९
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