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तीन सूचक
दोहा
गंगामग गंगेश हग, ग्रीवरेख गुण लेखि ।
पावफ, काल, त्रिशूल, बलि, संध्या तीनि विशेखि ॥८॥
पुष्कर विक्रम राम, विधि, त्रिपुर, त्रिवेनी, वेद ।
तीनिताप, परिताप, पद, ज्वरके तीनि सुखेद ॥६॥
गगा जी के ( तीन ) मार्ग, श्री शिव जी के ( तीन ) नेत्र, गर्दन की
(तीन) रेखाएँ, गुण सत्व, रज और तम ), अग्नि काल ( भूत, वर्तमान
भविष्य , त्रिशूल, बलि ( त्रिबली ), सध्या । प्रात , मध्यान्ह और साय )
पुष्कर (के तीन-वृद्धपुष्कर, शुद्धनाथ और ज्येष्ठ कुंड), राम परशुराम
श्रीरामचन्द्र और बलराम , विधि वेद विधि, लोक विधि, कुलविधि )
त्रिपुर, त्रिवेणी गङ्गा, यमुना सरस्वती । वेद ( ऋक, यजु, साम ; ताप
दैहिक, दैविक, भौतिक , परिताप ( मन परिताप, बल परिताप, वीर्य
परिवाप ) और ज्वर के तीन (बात, पित्त, कफ) पैर ये तीन सख्या के
चार सूचक
दोहा
वेद, वदन विधि, वारनिधि, हरि वाहन मुज चारि ।
सेना अंग, उपाय युग, आश्रम वर्ण विचारि ॥१०॥
सुरनायक वारनरदन, केशव दिशा बखानि ।
चतुर व्यूह रचना चमू , चरण, पदारथ जानि ॥११॥
'केशवदास' कहते है कि वेद (ऋक, 'यजु, साम, अथर्व), ब्रह्मा के मुख,
श्रीकृष्ण के रथ के घोडे, श्रीविष्णु की चार भुजाएँ, सेना के ( चार
रथ हाथी, घोडा, पैदल ) अग, उपाय ( साम, दाम, दड, भेद ) युग
( सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग ) आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ,
सन्यास), वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ), इन्द्र के हाथी ऐरावत के
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१९०
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