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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१९८

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'केशौदास' पुरी पुर-पुंजन के पालक पै,
सात ही पुरी सों पूरो प्रेम पाइयुत है।
नायिका अनेकन को नायक नगर नव,
अष्ट नायिकान ही सों मन लाइयतु है।
नवधाई हरि को भजन इन्द्रजीत जू को,
दश अबतार ही को गुन गाइयतु है॥२३॥

देवता जैसे अनेक राजाओ के नित्य शिर झुकाने पर भी दरशन नहीं देते अर्थात् उनकी ओर देखते तक नहीं और केवल षट दर्शनो ही को सिर झुकाते है। 'केशवदास' कहते है कि वह अनेक पुरी और नगरो के पालक होने पर भी केवल सात पुरियो से ही पूर्ण प्रेम रखते है। वह अनेक नायिकाओ के चतुर और युवा नायक होने पर भी, केवल आठ प्रकार की नायिकाओ से ही मन लगाते है। राजा इन्द्रजीत भगवान का भजन नौ प्रकार की भक्तियो से ही करते है और दशो अवतारो का ही गुण गाते है।

१०-आशिषालकार

दोहा

मातु, पिता, गुरु, देव, मुनि, कहत जु कछु सुख पाय।
ताही सों सब कहत है, आशिष कवि कविराय॥२४॥

माता, पिता, गुरु, देव और मुनि प्रसन्न होकर जो वचन कहते है, उसी को समस्त कवि तथा कविराज आशिष कहते है।

उदाहरण

कवित्त

मलय मिलित बास, कुकुम कलित, युत,
जावक, कुसुम नख पूजित, ललित कर।
जटित जराय की जजीर बीच नील मणि,
लागि रहे लोकन के नैन, मानो मनहर।