पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१९९

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(१८२)

हय पर, गय पर, पलिका सुपीठ पर,
अरि उर पर, अवनीशन के शीश पर।
चिरु चिरु सोहौ रामचन्द्र के चरण युग,
दीबो करै 'केशोदास' आशिष अशेष नर॥२५॥

चदन की सुगन्ध से मिले हुए, कुकुम और महावर से युक्त और फूलो से पूजित, जिनके नख है और जिनकी सुन्दर शोभा है। (उन चरणो मे) रत्नो से जड़ी हुई जंजीर पहने है जिसके बीच बीच मे नीलमणि जड़े हुए ऐसे प्रतीत होते है, मानो लोगो की आँखें है। 'केशवदास' कहते है कि अनेक मनुष्य सदा यही आर्शीवाद दिया करते हैं कि श्रीरामचन्द्र के दोनो चरण हाथी, घोड़े, पलङ्ग, आसन, शत्रु हृदय तथा राजाओं के शिरो पर चिर काल तक शोभित होते रहे।

उदाहरण-२ (सवैया)

होयधौ कोऊ चराचर मध्य मे, उत्तम जाति अनुत्तमहीको।
किन्नर के नर नारि विचार कि बास करै थलकै जलहीको॥
अगी अनंग कि मूढ अमूढ उदास अमीत कि मीत सहीको।
सो अथवै कि कहूँ जनि केशव जाके उदोत उदो सबहीको॥२६॥

चाहे वह चराचर मे कोई भी हो, उत्तम जाति का हो या निकृष्ट जाति का। चाहे किन्नर हो, चाहे मनुष्य अथवा स्त्री। चाहे स्थल पर रहता हो, चाहे जल मे। चाहे शरीरधारी हो या अंग रहित हो। चाहे मूर्ख हो या बुद्धिमान हो। उदासीन हो शत्रु हो अथवा मित्र हो केशव दास कहते है कि जिसके प्रकाश से सब प्रकाशित है वह कहीं भी अस्त न हो।

११-प्रेमालकार

कपट निपट मिटिजाय जहँ, उपजै पूरण क्षेम।
ताहीसों सब कहत है, केशव उत्तम प्रेम॥२७॥

जहाँ कपट बिलकुल दूर हो जाय और पूर्ण रूप से मङ्गल कामना के भाव उत्पन्न हो उसको (केशवदास कहते है कि) सब लोग उत्तम 'प्रेमालकार' कहते है।