पहला अर्थ
श्री नृसिह पक्ष मे
वह पृथ्वी को धारण करते है उनके चरणोदक को श्री शंकर जी अपने शिर पर लेते है। उनका यश ब्रह्माजी गाते है और वह सब सुखो को देने वाले हैं अथवा ब्रह्माजी उन्हे 'सर्व सुखदाता' कहकर उनकी प्रशंसा करते है। जिनके कोमल और निर्मल चरण श्री लक्ष्मी जी के कर-कमलो द्वारा सेवित है। जो गुणो से युक्त है। उन्हे हृदय मे क्यों स्थान नहीं देते? अथवा उन्हे हृदय मे स्थान क्यों न दिया जाय। जो हिरणकशिपु को मारने वाले तथा प्रहलाद के हित्कर्ता है, ब्राह्मण ( भृगु ) के चरण को छाती पर धारण करने वाले है तथा वेदो मे जिनकी प्रशंसा है। 'केशवदास' कहते हैं कि दरिद्र रूपी हाथी को मारने के लिए एक नृसिंह को अथवा राजा अमरसिंह को समर्थ समझना चाहिए।
दूसरा अर्थ
( अमरसिंह पक्ष मे )
पृथ्वी के बड़े राजा जिनका चरणोदक अपने शिर पर धारण करते हैं, तथा जिन्हे लोग सुखदाता बतलाते हुए चारो ओर प्रशंसा करते है। जिनके कोमल तथा स्वच्छ चरण, सुन्दर स्त्रियो के हाथो से सेवित होते है, जो अनेक गुणो से युक्त है उन्हे अपने हृदय मे क्यों न स्थान दिया जाय। जो सोने की शैय्या के दान करने वाले हैं और महा आनन्द के हितू है। जो ब्राह्मण के चरण को हृदय में रखते है अर्थात् उनका आदर करते है) और जो वेदो की व्याख्या करने वाले है। अत. (केशवदास कहते है कि) दारिद्रयरूपी हाथी को मारने के लिए एक नृंसिह अथवा राजा अमरसिंह ही को समर्थ मानना चाहिए।