पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२०३

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दूसरा अर्थ

समुद्र पक्ष मे

जहाँ पर परम विरोधी ( विष, वारुणी, सुधा आदि ) भी अविरोधी होकर रहते है। जो दानियो ( श्री लक्ष्मी जी, कल्पवृक्ष कामधेनु आदि मन चाही वस्तुओ को देने वाली ) का भी दानी है अर्थात् उत्पन्न करने वाला है। जिसके सच्चे कवि ( प्रशसक ) स्वंय केशव ( श्रीनारायण भगवान् ) है। जो स्वंय अधिक अनन्त है और जिसके साथ अनन्त ( शेषनाग जी ) रहते है। जो शरण विहीनी ( मैनाक, बड़वाग्नि ) को शरण देता है और जो अरक्षित जल का भंडार है। जो बड़वाग्नि का मित्र है और जिसके हृदय मे श्रीनारायण भगवान् निवास करते है। जिसे गंगाजल अच्छा लगता है और जो संसार की उत्पत्ति का आदि कारण है। अत: ईश्वर की शपथ केशवदास को देख देखकर कहते है कि यह रुद्र या समुद्र है या राणा अमरसिंह है।

तीसरा अर्थ

राणाअमरसिंह पक्ष में

जिनके यहाँ परम विरोधी (शत्रु गण) भी (उनके प्रभाव के कारण) अविरोधी (मित्र बनकर) रहते है। जो केशव (श्रीनारायण भगवान) के गुणो का कवि की तरह वर्णन करते है और जो प्रकृष्ट अर्थात् अधिक मान वाले है। जो दानियो के भी दानी है अर्थात् इतना दान करते है कि याचक भी दानी बनकर दान देने लगते है। जो स्वंय अधिक अनन्त ( गभीर ) है ( क्योकि उनका कोई भेद नहीं पा सकता ) और अनन्त ( असंख्य ) मनुष्यो के साथ रहते है। जो शरण विहीनी को शरण देते है और अरक्षित पुरुषो के लिए रक्षा का भंडार है। जो यज्ञादि में मन लगाते है जिनके हृदय मे श्रीनारायण का निवास रहता है अर्थात् जो ईश्वर भक्त है और जिन्हें गंगाजल प्रिय है तथा सारे संसार के लोगो के पूज्य है। ईश्वर की शपथ, केशवदास देख-देखकर कहते है कि यह रुद्र है या समुद्र है या राणा अमरसिंह है।