शत्रु को काटकर दूसरे को काटती है। जिस प्रकार बालक सुन्दरियो की सेना ( समूह ) को देखकर उनके मुख भूषणो मे से जिसे चाहता है उसे, किलक-किलककर पकड़ता है उसी प्रकार आपकी तलवार भी सेना रूपी सुन्दरी के मुख्य भूषणो अर्थात् मुख्य सिपाहियो या सरदारो को किलक-किलककर पकड़ती है। जिस प्रकार बालक खेल मे बनाये हुए बड़े-बड़े किलो को खिलौनो की भाँति तोड़ डालता है, उसी प्रकार आपकी तलवार भी बड़े-बड़े दुर्गो को खेल ही खेल खिलौनो की भाँति तोड़ डालती है अर्थात् जीत लेती है। जैसे बालक चन्द्रमा के लिए हठ करता है, वैसे आपको तलवार जगत मे यशरूपी चन्द्रमा को लेने का हठ ठानती है।
श्लेष के अन्य भेद
दोहा
बहुरयो एक अभिन्न क्रिय, औ भिन्न क्रिय आन।
पुनि विरुद्ध कर्मा अपर, नियम विरोधी मान॥२९॥
श्लेष के अभिन्न क्रिया, 'भिन्न क्रिया' 'विरुद्धकर्मा' 'नियम' और 'विरोधी' ये पाँच भेद होते है।'
उदाहरण (१)
अभिन्न क्रियाश्लेष
कवित्त
प्रथम प्रयोगियतु वाजि द्विजरात प्रति,
सुबरण सहित न विहित प्रमान है।
सजल सहित अङ्ग विक्रम प्रसङ्ग रङ्ग,
कोष ते प्रकाशमान धीरज निधान है।
दीन को दयाल प्रतिभटन को शाल करे,
कीरति को प्रतिपाल जानत जहान है।