पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२१४

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सुनि बाजत बीन प्रबीन नवीन सुराग हिये उपजावत सी।
कहि केशवदास प्रकास विलास सबै बन शोभाबढ़ावत सी॥४१॥

हे कृष्ण सुनो! कोयल, कामदेव की कीर्ति गाती हुई सी, बोल रही है। मधुर भाषिणी कामिनियाँ, काम-कला पढ़ाती हुई सी बातें कर रही है। हृदय मे नवीन राग को उत्पन्न करती हुई सी नवीन- वीणा किसी प्रवीण के द्वारा बज रही है। 'केशवदास' कहते है कि ये सभी विलास बन (बाग, घर और जङ्गल) को शोभा ही बढाते है।

उदाहरण-३

विरुद्धर्मा श्लेष

कवित्त

दोऊ भगवंत, तेजवंत, बलवंत दोऊ,
दुहुन की बेदन बखानी बात ऐसी है।
दोऊ जानै पुण्यपाप, दुहुन के ऋषि बाप,
दुहुन की देखियत मूरति सुदेशी है।
सुनौ देवदेव बलदेव, कामदेव प्रिय,
'केशौराय' की सौ तुम कहौ तैसी जैसी है।
वारुणी को राग होत, सुरुज करत अस्त,
उदौ द्विजराज को जु होत यह कैसी है॥४२॥

दोनो (सूर्य और चन्द्रमा) किरणधारी है, दोनो ही तेजस्वी और बलवान् है तथा दोनो ही का वर्णन वेदो मे है। दोनो ही पाप-पुण्य जानते है, दोनो के पिता ऋषि है दोनो ही की मूर्ति सुन्दर दिखलाई पड़ती है। हे देव-देव बलदेव सुनिए! आपको केशवराय (श्री कृष्ण) की शपथ है। जैसी बात है वैसी ठीक-ठीक बतलाइये। वारुणी (पश्चिम) के लाल होते ही चन्द्रमा के उदय होने पर, सूर्य अस्त हो जाते है, ऐसी बात क्यो होती है? वारुणी (शराब) पर अनुराग