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होने पर सूर्य (क्षत्रिय वर्ष) का अन्त हो और चन्द्र (ब्राह्मण) का उदय हो, यही विचित्रता है।

उदाहरण-४

नियमश्लेष

कवित्त

बैरी गाय ब्राह्मन को, कालै सब काल जहाँ,
कवि कुल ही को सुवरण हर काज है।
गुरु सेज गामी एक बालकै बिलोकियत,
मातगनि ही को मतवारे को सो साज है।
अरि नगरीन प्रति होत है अगम्या गौन,
दुर्गन ही 'केशौदास' दुर्गति आज है।
राजा दशरथ सुत राजा रामचन्द्र तुम,
चिरु चिरु राज करौ जाको ऐसो राज है॥३॥

जहाँ गाय और ब्राह्मण का बैरी यदि कोई है तो काल ( मृत्यु ) ही है, अन्यथा कोई बैरी नहीं। जहाँ सुवरण हरने का काम केवल कवियो का ही है अर्थात कोई सुवर्ण सोने की चोरी नहीं करता, केवल कवि लोग सुवर्ण ( सुन्दर अक्षर ) का हरण काव्य रचना के लिए करते है। जहाँ गुरु की शय्या पर सोता हुआ केवल बालक ही देखा जाता है अर्थात् गुरु ( माता ) के साथ केवल बालक सोता है अन्यथा गुरु सेजगामी कोई नहीं है। जहाँ मतवालापन केवल हाथियो मे हो पाया जाता है, अन्यथा कोई मतवाला नहीं है। जहाँ अगमागमन ( अगम्य स्थानों मे पहुँचना ) केवल शत्रु नगरी पर ही होता है अन्यथा अगम्यागमन ( अगम्य स्त्री-सङ्गम) कहीं सुनाई तक नहीं पड़ता। 'केशवदास' कहते है कि जहाँ दुर्गति ( टेढ़ी हालत ) केवल दुर्गो ( किलो ) में ही मिलती है अन्यत्र दुर्गति कहीं नहीं है। हे राजा दशरथ