पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२२७

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उद्धार करनेवाले न होते तो पूतना कहाँ की पतिव्रताई कहलाती थी (जो उसका उद्धार हो गया)।

(इसमे भी अद्भुत बातो के कारण 'आश्चर्य' का उदय होता है अतः अदभुत रसवत है)

हास्य रसवत

उदाहरण

सवैया

बैठति है निनमे हठिकै, जिनकी तुमसो मति प्रेमपगी है।
जानत हौ नलराज दमन्ती की दूत कथा रसरग रँगी है॥
पूजैगी साध सबै सुखकी मन, भाग की केशव जोति जगी है।
भेद की बात सुनेते कछू वह, मासकते मुसुक्यान लगी है॥६३॥

(एक दूती नायक से कहती है कि जिसकी बुद्धि तुम्हारे प्रेम मे पगी हुई है अर्थात् जो तुमसे प्रेम करती है, वह उन्हीं मे हठपूर्वक जाकर बैठा करती है। मै यह भी जानती हूँ कि वह राजा नल और दमयन्ती की कथा मे बड़ा आनन्द लेती है (क्योकि दमयन्ती ने पहले हॅस के द्वारा दूतत्व करवाया था)। (केशवदास दूती की ओर से कहते हैं कि) मुझे ऐसा ज्ञात होता है कि तुम्हारे मन को सब साध पूरी होगी और तुम्हारे भाग्य की ज्योति अब जग गई है अर्थात् तुम्हारा भाग्योदय हो गया है। इधर भेद की बातें (प्रेममयी बाते) सुनकर वह लगभग एक महीने से मुसकराने भी लगी है।

(उक्त बातो को सुनकर नायक के मन मे हँसी का भाव उदय होना स्वाभाविक है, अत हास्य रसवत अलंकार है)