मण्डल ) देश प्रदान किया। उनके वश के उद्देसकुल में कुंभवार उत्पन्न हुए। उनके पुत्र अपने वश की शोभा देवानन्द हुए। उनके पुत्र जयदेव और जयदेव के पुत्र पडिंतराज दिनकर हुए। उनपर दिल्ली के बाद-शाह अलाउद्दीन बड़ी कृपा रखता था। उन्होने गया समेत अनेक तीर्थों की यात्रा बहुत बार की थी। उनके पुत्र आनन्दकन्द गया गदाधर हुए और उनके पुत्र जयानन्द हुए जो विद्वान और जगत्प्रतिष्ठित थे। उनके पुत्र पडिंतराज त्रिविक्रम मिश्र हए जिनके पैरो की पूजा गोपाचल किले के राजा ने की थी। उनके पुत्र भावशर्मा हुए जो बड़े बुद्धिमान थे। भावशर्मा के पुत्र शिरोमणि मिश्र हुए जो षट् दर्शनो के मानो अवतार ही थे। मानसिंह पर क्रोध प्रकट करके उन्होने चारो दिशाओ को जीता और राणा ने उनके पैर धोकर बीस गाँव प्रदान किये। उनको भगवान् ने जगत्-प्रसिद्ध हरिनाथ पुत्र दिया, जिन्होंने तोमरपति का छोड़ और किसी के आगे भूलकर भी हाथ नहीं फैलाया। हरिनाथ के शुभ वेसवाले कृष्णदत्त हुए जिनको राजा रुद्र ने पुराण को वृत्ति प्रदान की। उनके पुत्र बुद्धि के समद्र काशीनाथ हुए जिनका राजा मधुकरशाह ने बड़ा सम्मान किया और बालकपन से ही मधुकरशाह ने उनसे पुराणो को सुना। उनके दो भाई और हुए जिनके नाम केशवदास और कल्याणदास थे। जिसके कुल में ( सस्कृत को छोड )। लोग भाषा को बोलना तक न जानते थे उसी कुल में भाषा-कवि मदमति केशवदास उत्पन्न हुआ। उससे जब इन्द्रजीत ने, प्रयाग मे कुछ मांगने के लिए कहा तब उसने कहा कि 'आप इसी प्रकार सदा कृपा करते रहिए।' इसी प्रकार बीरबल ने भी कहा था 'कि तुम्हारे मन में जो कुछ हो मांग लो।' तब यही मांगा था कि 'आपके दरबार में मुझे कोई न रोके।' उसको इन्द्रजीत ने अपना गुरु समझ कर सदा तन-मन से कृपा की और उसके पैर धोकर इक्कीस गाँव प्रदान किये। उन्हीं इन्द्रजीत के हेतू राजा रामशाह जी ने केशवदास को अपना मंत्री तथा मित्र समझकर आदर किया।
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