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हे सखी | मन होता है कि आज से अगिया न पहनू और नींद को
भी पास पे न आने दूं और सबी के नाते लज्जा को भी साथ मे न लूँ
( क्योकि ये भी स्त्री वर्ग की है, कहीं पति से मेल न कर लें।) ( क्योकि
मै देखती हूँ कि ) थोडे दिनो से वे सखियाँ भी उनसे प्रेम करने लगों है,
जिन्हे देख देखकर मै जिया करती थी अर्थात् जिन्हे प्राणो के समान
प्यारा समझती थी। इसीलिए अब यह सिद्धान्त स्थिर किया है कि)
प्रेम के मामले मे ( सखी तो सखो ) अपनी छाँह तक का विश्वास नहीं
करना चाहिए। क्योकि सम्भव है वह भी प्राणो से प्यारी सखियो की
भाँति धोखा दे जाय )।
( इसमे गूढ व्यग्य हारा अपनी सखी के प्रति क्रोध प्रकट करती हुई
सकेत करती है कि तेरी अगिया फटी है तू रात भर सोई नहीं, तू निर्लज्ज
है और तेरी छाया भी मलिन जान पडती है )।
२-अन्योक्ति
दोहा
औरहि प्रति जु बखानिये, कछू और की बात ।
अन्य उक्ति यह कहत है, बरणत कवि न अघात ॥६॥
जहाँ किसी दूसरे की बात किसी दूसरे के प्रति कहकर प्रकट की
जाती है, वहाँ 'अन्योक्ति' कहते है, जिसका वर्णन करते-करते कवि लोग
कभी तृप्त नहीं होते।
उदाहरण
सवैया
दल देखौ नहि जड़ जाडो बड़ो, अरु घाम घनो जल क्यों हरिहै ।
कहि केशव बावु बहै, दिन दाव, दहै धर धीरज क्यो धरिहै ॥
फलहै फुलि है नही तोलौ तुहीं, कहि सो पहि भूख सही परिहै ।
कछु छांह नही सुख शोभा नही रहि कीर करील कहा करिहै ॥७॥
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२४२
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