[यहाँ साधक मधुकरशाह को कीर्ति न मिलकर साधन दूलहराम को कीर्ति प्राप्त हुई अत अमित अलंकार हुआ।]
२५---पर्यायोक्ति
दोहा
कौनहुँ एक अदृष्टत, अनही किये जु होय।
सिद्ध आपने इष्टकी, पर्यायोकति सोय॥
जहाँ अपने इष्ट को सिद्धि, किसी अदृष्ट कारण से, बिना प्रयत्न किए हो जाय, वहाँ पर्यायोक्ति होता है।
उदाहरण
कवित्त
खेलत ही सतरज अलिन मे, आपहि ते,
तहाँ हरि आये किधौ काहू के बोलाये री।
लागे मिलि खेलन मिलै कै मन हरे हरे,
देन लागे दाउं आपु आपु मन भाये री।
उठि उठि गईं मिस मिसही जितही तित,
'केशौदास' कि सौ दोऊ रहे छवि छाये री।
चौकि-चौकि-तेहि छन राधा जू के मेरी आली,
जलज से लोचन जलद से ह्वै आये री।
राधा जी सखियो मे शंतरज खेल रही थी। इतने मे श्रीकृष्ण या तो स्वंय या किसी के बुलाये हुए वहाँ आ पहुचे। वहाँ फिर मिलकर खेलने लगे और धीरे-धीरे मन मिलाकर अपना दॉव भी देने लगे। इसी