( २४० )
बीच ने किसी न किसी बहाने से सब सखियाँ उठ गई और ईश्वर
की सौगन्ध दोनो छबीले ( श्री कृष्ण और श्री राधा ) हो रह गये । हे
मेरी सखी। उस समय राधा जी की कमलवत् आँखें चौंक चौंककर
बादल सी हो आई । ( भाव यह है कि उनके आनन्दाथ आने
लगे।)
[ यहाँ बिना यत्न किये ही अचानक काय-सिद्धि हुई है, अत
पर्यायोक्ति अलकार है ]
२६-युक्ति अलङ्कार
दोहा
जैसो जाको बुद्धि बल, कहिये तैसो रूप ।
तासो कविकुल युक्ति यह, बरणत बहुत सुरुप ।।
जिसका जैसा बुद्धि बल हो, उसको वैसा ही वर्णन करने को कवि
लोग 'युक्त' कहते है।
उदाहरण-२
कवित्त
मदन बदन लेत लाज को सदन देखि,
यद्यपि जगत जीव मोहिबे को है छमी ।
कोटि कोटि चन्द्रमा निवारि । बारि बारि डारी,
जाके काज ब्रजराज आज लौ है संयमी ।
'केशौदास' सविलास तेरे मुख की सुवास,
सुनियत आरस ही सारसनि लैरमी ।
मित्रदेव, छिति, दुर्ग, दंड, दल, कोष, कुल,
बल जाके ताके कहौ कौन बात की कमी ॥३०॥
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२५७
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
