उदाहरण
कवित्त
सोने की एकलता तुलसीबन, क्यों बरणों सुनि सकै छवै।
केशवदास मनोज मनोहर ताहि, फले फल श्रीफल से वै॥
फूलि सरोज रह्यों तिन ऊपर, रूप निरूपन चित चलै च्वै।
तापर एक सुवा शुभ तापर, खेलत बालक खंजन के द्वै॥१८॥
मैने तुलसीवन अर्थात् वृन्दावन पे एक सोने की लता देखी है, उसका वर्णन कैसे करूँ क्योकि बुद्धि वहाँ तक पहुचती ही नहीं। 'केशवदास' कहते है कि उस लता मे कामदेव का भी मन हरने वाले दो श्रीफल फले हुए है। उन श्रीफलो या वेलो पर एक कमल फूला हुआ है जिसको देखते ही चित्त द्रवीभूत हो जाता है। उस पर एक सुआ बैठा है और उस सुआ पर दो खजन के बच्चे खेल रहे है।
(इसमे सोने की लता, नायिका है, श्रीफल कुच है, कमल मुख है सुआ नाक है और आँखें खजन है)
३-रूपक रूपक
दोहा
रूपक भाव जहँ वरणिये, कौनहु बुद्धि विवेक।
रूपक रूपक कहत कवि, केशवदास अनेक॥१९॥
केशवदास कहते है कि किसी वस्तु या भाव का रूप अपने बुद्धि- विवेक के बल पर (परम्परा से हट कर भी) किया जाता है, उसे अनेक कवि 'रूपक रूपक' कहते है।
उदाहरण
सवैया
काछे सितासित काछनी केशव, पातुर ज्यों पुतरोनि विचारो।
कोटि कटाक्ष चलै गति भेद नचावत नायक नेह निनारो॥