( २६८ )
सोभा सुभसानी, परमारथ निधानी, दीह,
कलुष कृपानीमानी, सब जग जानी है।
पूरब के पूरे पुण्य, सुनिये प्रवीणराय,
तेरी वाणी मेरी रानी गंगा को सो पानी है ॥१८।।
हे मेरी रानी प्रवीण राय ! तेरी वाणी गङ्गा की पानी जैसी है।
क्योकि जैसे गङ्गा का पानी सुवरण युत अर्थात् सुन्दर रङ्ग का होता
है, वैसे ही तेरी वाणी सुवरण युत अर्थात् अच्छे अक्षरो वाली है । जिस
प्रकार गङ्गा जल सुरवरन कलित अर्थात् श्रेष्ठ देवताओ से युक्त होता है,
उसी प्रकार तेरी वाणी भी सुरवरन युक्त अर्थात् श्रेष्ठ स्वरो से भरी है ।
जिस प्रकार गगा जल भैरव जी । श्री शंकर जी) से सम्बन्ध रखता है,
उसी प्रकार तेरी वाणी में भैरव राग है । जैसे गङ्गा जल ललित गति
(मोक्ष) देने वाला है, वैसे ही तेरी वाणी मे ललित गति (सुन्दर प्रवाह है
जैसे गङ्गाजल वितानी (विस्तृत भूमि मे बहने वाला है । वैसे ही तेरी
वाणी भी वितानी अर्थात् विशेष तीनो वाली है। जैसे गङ्गा जल पवित्र
है, उसी तरह तेरी वाणी भी व्याकरण से शुद्ध है । गङ्गाजल मे जिस प्रकार
द्विज (ब्राह्मण ) स्नान करते दिखलायी पडते है, उसी प्रकार तेरी वाणी
मे भी द्विजो ( दाँतो ) की चमक दिखलाई पडती है। जैसे गङ्गाजल श्रति
सुखदानी अर्थात् वेद सम्बन्धी कार्यो के लिए शुभ है, उसी प्रकार तेरी
वाणी भी श्र ति सुखदानी ( कानो के लिए सूख देने वाली ) है । गङ्गाजल
जैसे शोभा से सना हुआ है वैसे ही तेरी वाणी भी परम अर्थ मय है।
जैसे गङ्गाजल कलुषदीह ( पापो के समूह ) को कृपानी ( तलवार के
समान काटने वाला ) है, वैसे ही तेरी वाणी भी ( भजनादि से पूर्ण
होने के कारण ) कलुषनाशिनी मानी गई है। जिस प्रकार गङ्गाजल
को सारा ससार जानता है, उसी प्रकार तेरी वाणी भी जगत मे
प्रसिद्ध है।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२८५
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