पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(२७१)

होती जाती है। इसलिए, 'केशवदास' सखी की ओर से कहते हैं कि) ईश्वर की शपथ, जो कवि सीता जी के मुख को चन्द्रमा जैसा वर्णन करता है वह मूसलसा अर्थात् जड़ या मूर्ख है। वह तो केवल कमल सा है क्योंकि वह सुन्दर सुगन्ध से युक्त है और कोमल तथा निर्मल या स्वच्छ है।

१०---गुणाधिकोपमा

दोहा

अधिकनहूँ ते अधिकगुण, जहाँ बरणियतु होय।
तासों गुण अविकोपमा, कहत सयाने लोय॥२३॥

जहाँ अधिक से अधिक गुण वाले उपमानो के साथ उपमेय का वर्णन करके उसे सबसे अधिक प्रमाणित किया जाता है वहाँ उसे चतुर लोग गुणाधिकोपमा कहते है।

उदाहरण

कवित्त

वे तुरंग सेत रंग सग एक, ये अनेक,
है सुरंग अंग-अंग पै कुरंग मीत से।
ये निशङ्क यज्ञ अंक, वे सशंक 'केशौदास'
ये कलङ्क रङ्क वे कलङ्क ही कलीत से।
वे पिये सुधाहि, सुधानिधीश के रसै जु,
सांचहू पुनीत ये, सुनीत ये पुनीत से।
देहि ये दिना बिना, बिना दिये न देहि वे,
भये न, है न, होंहिगे न इन्द्र, इन्द्रजीत से।

उसके पास सफेद रङ्ग का एक घोड़ा (उच्चै श्रवा) है, इनके पास अनेक रङ्गो के, कुरङ्ग (हिरनो) के मित्र अर्थात् चाल में वैसे ही तेज अनेक घोड़े है। 'केशवदास' कहते है कि ये यज्ञ चिन्हो से निडर रहते है