पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३०

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( २० )

से कहते है कि मैं तुम्हारी सभी चूक सहलूँगी परन्तु तुम जो मेरे मुख को चूमकर चल दिये, यह मैं सहन न करूँगी। अतः या तो मुझे फिर अपना मुख चूमने दो नहीं तो मैं अपनी धाय से जाकर कह दूँगी।

[ इस छन्द मे कोई भी चमत्कारपूर्ण अलंकार नहीं है अतः नग्न दोष है ]

( ५ ) अर्थहीन मृतक दोष।

सवैया

काल कमाल करील करालनि, शालनि चालनि चाल चली है।
हाल विहालन ताल तमाल, प्रबालक वालक बाललली है॥
लोल बिलोल कपोल अमोलक, बोलक मोलक कोलकली है।
बोल निचोल कपोलनि टोलति, गोल निगोलक लोल गली है॥१४॥

[ इस छन्द में सभी शब्द अर्थ शून्य हैं, अतः इसमे अर्थहीन 'मृतक' दोष है। ]

कुछ अन्य दोष।

दोहा

अगन न कीजै हीनरस, अरु केशव यविभंग।
व्यर्थ अपारथ हीन क्रम, कवि कुल तजौ प्रसंग॥१५॥

'केशवदास' कहते है कि हे कवियो! तुम 'अगण' 'हीनरस' 'यतिभंग' 'व्यर्थ', 'अपार्थ', और 'हीन क्रम' दोषो के प्रयोगो को छोड दो।

वणे प्रयोग न कर्णकटु, सुनहु सफल कविराज।
शब्द अर्थे पुनरुक्तिके, छोड़हु सिगरे साजा॥१६॥

सब कविराज सुनो। कर्णकटु ( कानो को अप्रिय लगने वाले ) वर्णो का प्रयोग न करो तथा शब्द तथा अर्थ की पुनरुक्ति को भी छोड दो।

देशविरोध न वरणिये, कालनिरोप निहारि।
लोक न्याय आगमन के, तजौ विरोध विचारि॥१७॥