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२२---संकीर्णोपमा

दोहा

बन्धु, चोर, बादी, सुहृद, कल्पपृच्छ प्रभु जान।
अंगी, रिपु, सोदर आदिदै, इनके अर्थ बखान॥४६॥

बन्धु, चोर, बादी, सुहृद मित्र), कल्प (शरीर), पृच्छ (विवादी), प्रभु, अंगी, रिपु (शत्रु) तथा सोदर (सगा भाई) आदि सकीर्णोसमा के वाचक समझने चाहिए।

उदाहरण

कवित्त

विधु को सो बंधु किधौ चोर हास्य रस कोकि,
कुन्दन को वादी, किधौ मौतिन को मति है।
कल्प कल हॅस को कि छीन निधि छवि प्रच्छ,
हिमगिरि-प्रभा प्रभु प्रगट पुनीत है।
अमल अमित अंगी गंगा के तरंगन को,
सोदर सुधा को, रिपु रूपे को अभीत है।
देस देस दिस दिस परम प्रकाशमान,
किधौ 'केशौदास' रामचन्द्र जू को गीत है॥४८॥

चन्द्रमा का भाई है कि हास्यरस का चोर है कि कुन्दन (सोने) का वादी है, कि अमृत का सगा भाई है अथवा मोतियो का मित्र है। सुन्दर हॅस का शरीर है कि क्षीर निधि का प्रतिद्वन्द्वी है कि हिमालय की शोभा का स्वामी अथवा प्रत्यक्ष पवित्रता है। गङ्गा जी की निर्मल तरंगों का साथी है कि अमृत का सगा भाई है कि चाँदी का निडर शत्रु है अथवा 'केशवदास' कहते है कि देश देशान्तरो में प्रकाशमान यह श्री रामचन्द्र जी का गीत है।