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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३०३

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पद्रन्हवाँ प्रभाव

३६---यमक अलङ्कार

दोहा

पद एकै नाना अरथ, जिनमे जेतोवित्तु।
तामे ताको काढ़िये, चमक मांहि दै चित्तु॥१॥

जहाँ शब्द एक ही हो अर्थ अनेक हो, वहाँ यमक होता है। इस यमक में चित्त लगाकर, जिसमे जितनी प्रतिभा शक्ति होती है, उतने ही अर्थ निकाल सकता है।

आदि पदादिक यमक सब, लिखे ललित चितलाय।
सुनहु सुबुद्धि उदाहरण, केशव कहत बनाय॥२॥

केशवदास कहते है कि मैंने यमक के आदि पदादिक अनेक सुन्दर भेद मन लगाकर लिखे है। हे सुबुद्धि! अब उनके उदाहरणो को सुनो, जो मैंने बनाये है।

आदिपत यमक

दोहा

सजनी सज नीरद निरखि, हरषि नचत इत मोर।
पीय पीय चातक रटत, चितवहु पिय की ओर॥३॥

हे सजनी! बादलो की सज (सजावट) को देख। यहाँ मोर हषित होकर नाच रहे हैं, अतः तू भी पति की ओर देख।

[इसमे सजनी-सजनी में यमक है जो आदि में है, इसलिए आदि-पद यमक नाम रखा गया है।