पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(२८७)

इस संसार में बिना दिये अर्थात् पूर्वजन्म में बिना दाम किये न तो शोभा से युक्त आंगन या घर मिलता है, न घुड़साल मे घोड़े हींसते है और न दरवाजे पर हाथी चिंघाड़ते हैं।

[इसमे बारन, वार न पदो मे तीसरे पद का यमक है]

चतुर्थपद यमक

दोहा

राधा! केशब कुँवर की, बाधा हरहु प्रवीन।
नेकु सुनावहु करि कृपा, शोभन बीन नवीन॥७॥

हे प्रवीण राधा! श्री कृष्ण की बाधा दूर करो और उन्हे तनिक कृपा करके, नई सुन्दर वीणा सुना दो।

(इसमें नवीन-नवीन में यमक है जो चतुर्थ पद में है) अतः चतुर्थपाद यमक है।

यमक आद्यंत

दोहा

हरिके हरि केवल मनहि, सुनि वृषभानुकुमारि।
गावहु कोमलगीत द्वै, सुख करता करतारि॥६॥

हे वृषभान कुमारी (राधा) सुनो! हरि (श्रीकृष्ण) के बल और मन को हरि के (हरण करके) तुम यहाँ (करतारि दै) ताली बजाकर (सुख करता) आनन्ददायक कोमल गीत गा रही हो। (वहाँ वह तुम्हारे वियोग मे तड़प रहे है)।

(इसमें आदि मे हरि के-हरिके शब्दों में, तथा अन्त में 'करता, करता' शब्दो मे यमक है अतः आद्यन्त यमक हुआ।)