( २८८ )
द्विपादयमक (प्रथम और तीसरे मे)
दोहा
अलिनी अलि नीरज बसे, प्रति तरुवरनि विहङ्ग ।
है मनमथ मनमथन हरि, बसै राधिका सग ॥६॥
जिस प्रकार भ्रमरी और भ्रमर कमल में बसते है और जिस प्रकार
प्रति वृक्ष पर पक्षियो के जोडे रहते है, उसी प्रकार मनमथ ( कामदेव )
के मन को मथने वाले श्री कृष्ण श्री राधाजी के साथ रहते है ।
(इसमे पहले चरण मे 'अलिनी अलिनी' मे यमक है और तीसरे
चरण मे 'मनमथ-मनमथ' में यमक है )
त्रिपद यमक
___दोहा
सारस सारसनैन सुनि, चन्द्र चन्द्रमुखि देखि ।
तू रमणी रमणीयतर, तिनते हरिमुख लेखि ॥१०॥
हे सारस नैन ( कमलवत नेत्र वाली ) सुन ! हे चन्द्रमुखी | सारस
( कमल ) और चन्द्रमा को देख | हे रमणी । तू इनसे भी रमणीयतर
( बढकर ) है। उनसे भी बढकर हरिमुख (श्री कृष्ण के मुख ) को
समझ ।
(इसमे पहले चरण में 'सारस-सारस मे, दूसरे में 'चन्द्र, चन्द्र'
मे और तीसरे मे "रमणी, रमणी' मे यमक है अत. त्रिपाद यमक
हुआ)
पादान्तपादादियमक
दोहा
आप मनावत प्राणप्रिय, मानिनि मान निहार ।
परम सुजान सुजान हरि, अपने चित्त विचारि ॥११॥
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३०६
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