पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३०६

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द्विपादयमक (प्रथम और तीसरे में)

दोहा

अलिनी अलि नीरज बसे, प्रति तरुवरनि विहङ्ग।
है मनमथ मनमथन हरि, बसै राधिका संग॥९॥

जिस प्रकार भ्रमरी और भ्रमर कमल में बसते है और जिस प्रकार प्रति वृक्ष पर पक्षियो के जोड़े रहते है, उसी प्रकार मनमथ (कामदेव) के मन को मथने वाले श्री कृष्ण श्री राधाजी के साथ रहते है।

(इसमे पहले चरण मे 'अलिनी अलिनी' में यमक है और तीसरे चरण मे 'मनमथ-मनमथ' में यमक है)

त्रिपद यमक

दोहा

सारस सारसनैन सुनि, चन्द्र चन्द्रमुखि देखि।
तू रमणी रमणीयतर, तिनते हरिमुख लेखि॥१०॥

हे सारस नैन (कमलवत नेत्र वाली) सुन! हे चन्द्रमुखी! सारस (कमल) और चन्द्रमा को देख! हे रमणी! तू इनसे भी रमणीयतर (बढ़कर) है। उनसे भी बढकर हरिमुख (श्री कृष्ण के मुख) को समझ।

(इसमें पहले चरण में 'सारस-सारस में, दूसरे में 'चन्द्र, चन्द्र' में और तीसरे मे 'रमणी, रमणी' में यमक है अतः त्रिपाद यमक हुआ)

पादान्तपादादियमक

दोहा

आप मनावत प्राणप्रिय, मानिनि मान निहार।
परम सुजान सुजान हरि, अपने चित्त विचारि॥११॥