आठौ गन के देवता, अरु गुन दोष विचार ।
छन्दोग्रन्थनि में कह्यो, तिनको बहु विस्तार ॥२२॥
इन आठो गणो के देवता तथा गुण दोषो का भी छन्द-ग्रन्थों में
विचारपूर्वक वर्णन किया गया है। उनका बडा विस्तार है।
गण देवता वर्णन ।
मही देवता मगन को, नाग नगन को देखि ।
जल जिय जानहु यगन को, चद भगन को लेखि ॥२३॥
'मगण' का देवता पृथ्वी, 'नगण' का शेषनाय, यगरण का जल,
और 'भगण' का चन्द्र समझो ।
सूरज जानहु जगन को, रगन शिखीमय मान ।
वायु समुझिये सगनको, तगन अकाश बखान ॥२४॥
'जगण' का देवता सूर्य और 'रगण' का अग्नि जानो । इसी प्रकार
'सगण' का वायु तथा 'वगण' का आकाश समझो।
गण मित्रामित्र वर्णन ।
मगन नगन को मित्रानि, यगन भगन को दास ।
उदासीन जाति जानिये, रस रिपु केशवदास ॥२५॥
'केशवदास' कहते है कि 'मगण' और 'नगण' का नाम मित्र समझो
तथा 'यगरण' और 'भगण' की दास सज्ञा मानो । इसी तरह
'जगण' और 'तगण' की सजा उदासीन तथा 'रगण' और 'सपण' को
शत्रु जानो।
गण देवता तथा फल वर्णन ।
छप्पय
भुम भूरि सुख देय, नीर नित आनन्दकारी ।
आगि अग दिन दहै, सूर सुख सोबै भारी ॥
केशव अफल अकाश, वायु किल देश उदासै ।
मंगल चन्द अनेक, नाग बहु बुद्धि प्रकासै ।।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३२
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