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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३२

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( २२ )

आठौ गन के देवता, अरु गुन दोष विचार।
छन्दोग्रन्थनि में कह्यो, तिनको बहु विस्तार॥२२॥

इन आठो गणो के देवता तथा गुण दोषो का भी छन्द-ग्रन्थों में विचारपूर्वक वर्णन किया गया है। उनका बडा विस्तार है।

गण देवता वर्णन।

मही देवता मगन को, नाग नगन को देखि।
जल जिय जानहु यगन को, चद भगन को लेखि॥२३॥

'मगण' का देवता पृथ्वी, 'नगण' का शेषनाथ, यगण का जल, और 'भगण' का चन्द्र समझो।

सूरज जानहु जगन को, रगन शिखीमय मान।
वायु समुझिये सगनको, तगन अकाश बखान॥२४॥

'जगण' का देवता सूर्य और 'रगण' का अग्नि जानो। इसी प्रकार 'सगण' का वायु तथा 'तगण' का आकाश समझो।

गण मित्रामित्र वर्णन।

मगन नगन को मित्रगनि, यगन भगन को दास।
उदासीन जाति जानिये, रस रिपु केशवदास॥२५॥

'केशवदास' कहते है कि 'मगण' और 'नगण' का नाम मित्र समझो तथा 'यगण' और 'भगण' की दास सज्ञा मानो। इसी तरह 'जगण' और 'तगण' की सजा उदासीन तथा 'रगण' और 'सगण' को शत्रु जानो।

गण देवता तथा फल वर्णन।

छप्पय

भुम भूरि सुख देय, नीर नित आनन्दकारी।
आगि अग दिन दहै, सूर सुख सोबै भारी॥
केशव अफल अकाश, वायु किल देश उदासै।
मंगल चन्द अनेक, नाग बहु बुद्धि प्रकासै॥